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सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि जनता पर करों का बोझ लादने और पिछली सुविधायें खत्म करने की रही है. |
बीते चार वर्षों से केन्द्र की भाजपा सरकार उद्योग जगत की तरक्की के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है और आम आदमी पर भारी-भरकम करों का बोझ लादने के नये-नये तरीके ईजाद कर रही है। रोजगार सृजन का ढोल पीटा जा रहा है और नवयुवकों के लिए सरकारी सेवाओं के द्वार या तो धीरे-धीरे बंद किये जा रहे हैं अथवा उन्हें संकरा बनाया जा रहा है। मोदी राज के इन चार वर्षों में बेरोजगारों की फौज कम होने के बजाय तेज़ी से बढ़ी है।
प्रधानमंत्री, उनके मंत्री या उनके इशारों पर नाचने वाले मीडिया के भक्त एंकर कुछ भी तर्क देते रहें लेकिन कपड़ा, साईकिल, पीतल और स्टील शिल्प उद्योग, और दूसरे उद्योग जो बड़े उद्योगों के लिए छोटा सामान या पुर्जे तैयार करते हैं लगातार ढलान पर हैं। मोदी सरकार के सत्ता में आने के समय कपड़ा उद्योग निर्यात में अग्रणी था। हमारे देश से निर्यात में कपड़े की महत्वपूर्ण भागीदारी थी लेकिन चार साल आते-आते उसमें 25 फीसदी के आसपास बड़ी गिरावट दर्ज की गयी है।
सरकार की गलत नीतियों के कारण मुरादाबाद का पूरा पीतल कारोबार संकट में है। पहले से बैंकों की कर्जदार बड़ी कंपनियों को फिर से कर्ज देने को प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री लगातार और कर्ज देने का बैंकों पर दबाव बनाते रहे। नोट बंदी के ऐलान से तीन दिन पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जब सरकारी बैंकों के शीर्ष प्रबंधन से बड़े उद्योगों को और कर्ज की बात कही।
प्रबंधकों ने जब नकदी की कमी तथा एनपीए के बढ़ने का खतरा वित्तमंत्री जेटली को बताया तो वे खामोश हो गये। इसके तीन दिन बाद ही रात में प्रधानमंत्री ने नोट बंदी का ऐलान कर बैंकों में नोट बदलने के बहाने सारा धन जमा करा लिया। जिसका खामियाजा आज तक पूरा देश भुगत रहा है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 70-75 रुपये बैरल तक आने के बावजूद पेट्रोल 86 रुपये प्रति लीटर पहुंच गया है। डीजल भी कमोबेश उसी रफ्तार पर है तथा प्रतिदिन दोनों पदार्थों की कीमत बढ़ाई जा रही है।
केन्द्र और राज्य सरकारें जमकर मुनाफा कमा रही हैं। यूपीए सरकार के शासन में कच्चा तेल 120 रुपये बैरल तक था लेकिन पेट्रोल 73 से ऊपर नहीं जाने दिया। यदि कच्चा तेल उस स्तर तक चला गया तो मोदी सरकार में पेट्रोल 150 को भी पार कर जाएगा।
चार वर्षों में मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि जनता पर करों का बोझ लादने और पिछली सुविधायें खत्म करने की रही है। इसी से लोगों की क्रय शक्ति घट गयी और मध्य तथा छोटे उद्योग चौपट हो गये जबकि अब पूरे बाजार पर ही मंदी के बादल मंडरा रहे हैं। और सरकार चार साल की सत्ता के नशे में जश्न में जुटी है।
-जी.एस. चाहल.