किसानों की समस्यायें दरकिनार चुनाव प्रचार फिर शुरु

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देश के कई भागों में किसान आंदोलित है और उनकी आवाज दबाई जा रही है.
कम होने के बजाय किसानों की बढ़ती समस्याओं का कुप्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। किसान संगठन और किसानों के समर्थक काफी समय से कृषि क्षेत्र की बदहाली और उसके सुधार की पुरजोर मांग उठा रहे हैं लेकिन न तो केन्द्र और न ही राज्य सरकार उस ओर कोई ध्यान दे रही। इसके विपरीत किसान कल्याण कोष जैसे स्रोतों का धन छोटे पर्दे पर किसानों की खुशहाली के विज्ञापन देकर खर्च किया जा रहा है।

बिजली मूल्य साठ फीसदी बढ़ाकर, डीजल के दामों में लगातार तेज़ी, उर्वरकों की मूल्य वृद्धि के साथ यूरिया के कट्टे को 50 किलोग्राम की जगह 45  किलोग्राम करके और विद्युत कनेक्शन पर 18 फीसदी जीएसटी थोपकर किसानों की कमर तोड़ने का काम किया जा रहा है। भयंकर सूखे के बावजूद कई-कई दिन बल्कि हफ्तों तक गांवों में बिजली गायब रहती है। खंभे, तार और ट्रांसफार्मर तक बदलने में लंबा समय लग रहा है।

इस तरह की समस्याओं के निदान के बजाय सरकारी दावे किये जा रहे हैं कि किसानों की आय बढ़ाने को सरकार बहुत काम कर रही है। गन्ने का भुगतान नहीं, गेहूं खरीद केन्द्रों पर गेहूं नहीं लिया जा रहा। किसान पैसे-पैसे को मोहताज है। देश के कई भागों में किसान आंदोलित है। उनकी आवाज दबाई जा रही है। जंतर-मंतर (दिल्ली) तथा मुम्बई में किसानों के दीर्घकालिक धरने और प्रदर्शन हुए लेकिन उनका दर्द दूर करना तो दूर सरकार ने उनसे बात तक करने की जहमत नहीं उठाई।

भारतीय किसान यूनियन के सभी गुट, राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन तथा इसी तरह के दूसरे संगठन ब्लाक, तहसील तथा जिला मुख्यालयों पर अपने दर्द का शोर मचाकर उसे दूर कराने को आंदोलनरत हैं। अधिकारियों को राज्य और केन्द्र सरकार तक भेजने को ज्ञापन दे रहे हैं।

सरकार के मंत्री, सांसद, विधायक और संगठन पदाधिकारी इन सब समस्याओं को दरकिनार कर गांव-गांव आगामी लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान में जुट गये हैं। चौपाल कार्यक्रमों में मोदी सरकार की तारीफों के पुल बांधे जा रहे हैं और एक बार फिर से भाजपा की सरकार बनाने की याचना की जा रही है।

-टाइम्स न्यूज़ अमरोहा.

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