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चार साल से खामोश बैठे कुर्सी का आनन्द लेने वाले सांसद अब क्या करें? |
उल्लेखनीय है कि अपने कार्यकाल के चार वर्ष बीतने के बाद भी अधिकांश सांसदों ने अपने क्षेत्र के विकास में कोई रुचि नहीं ली। स्थिति यहां तक खराब है कि सांसदों के गोद लिए गांवों की हालत जस की तस है जैसी वह चार वर्ष पूर्व थी। बहुत से गांवों में स्वच्छता अभियान जैसी पीएम की महत्वाकांक्षी योजना का कोई प्रभाव नहीं। शौचालयों के निर्माण में घोटालों की लंबी फेहरिस्त हैं और जमीन के बजाय कई जगह कई गांव कागज़ों में ओडीएफ करके धन हड़प लिया गया। अमरोहा जनपद की हसनपुर और गंगेश्वरी ब्लॉक में इस तरह घोटाले किसी से नहीं छिपे।
गोद लिए गांवों में से अनेक में पीने के पानी तक की उचित व्यवस्था नहीं। कई गांवों में बरसात से रास्तों में कीचड़ और जलभराव की समस्यायें ज्यों की त्यों हैं। नालियों और रास्तों का बुरा हाल है। अमरोहा लोकसभा क्षेत्र में सांसद कंवर सिंह तंवर ने चकनवाला और करनुपर दो गांवों को गोद लिया था। इन दोनों गांवों में बिजली, पानी तथा कृषि समस्याओं के लिए लोगों को धरने और प्रदर्शन को मजबूर होना पड़ रहा है लेकिन सांसद की ओर से इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह आयेदिन मीडिया के जरिए केन्द्रीय सरकार के द्वारा किये जा रहे विकास कार्यों का ढोल पीट रहे हैं और अपने सांसदों, मंत्रियों और विधायकों को कह रहे हैं कि गांव-गांव जाकर सरकारी नीतियों का प्रचार करें। क्योंकि वोट तो गांवों में हैं। सरकार बनाने-बिगाड़ने की ताकत भी इन्हीं लोगों में हैं।
चार साल से खामोश बैठे कुर्सी का आनन्द लेने वाले सांसद अब क्या करें? गांव हो या शहर स्चछता के शोर के अलावा कुछ भी विकास नहीं दिखाई दे रहा। स्वच्छता के शोर में सारे काम दब गये। गांव-गांव और घर-घर बेरोजगार बैठे हैं जिनमें पढ़े-लिखे वे नौजवान हैं जिन्हें उभरते भारत का प्रतीक बताकर 2014 में भाजपा नेताओं ने उन्हें हसीन सपने दिखाकर उनके मतों से सत्ता पर कब्जा किया। दोबारा चुनावी मौसम चल पड़ा लेकिन उनके अच्छे दिनों के सपने कोरे रेत के महल सिद्ध होकर रह गए।
छोटे कस्बों से शहरों तक के कारोबारी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं और सरकार कह रही है नौकरी के बजाय युवक स्वरोजगार अपनाएं। पहले से स्वरोजगार करने वाले युवा खुद यह सोच रहे थे कि काम धीमा पड़ने से बेहतर है कि कोई नौकरी मिल जाये तो हर माह एक निश्चित आय तो होने लगे। सरकार के इस फार्मूले ने स्वरोजगार से जुड़े तथा बेरोजगारी की पीड़ा झेल रहे दोनों ही तरह के लोगों को असमंजस में डाल दिया। कोई कुछ भी कहे सांसदों और उनकी सरकार के पास केवल ढोल बजाने के हकीकत में वह सब नहीं जिसकी जनता को उससे चार साल पहले अपेक्षाएं थीं।
पाठकों को स्मरण होगा, दिल्ली के महानगर निगम चुनाव में पिछले दिनों भाजपा ने अपने सभी सिटिंग पार्षदों के टिकट काटकर नये चेहरे मैदान में उतारे थे। भाजपा को भय था कि पार्टी के दस वर्षाें के शासन में नगरवासी उसके कार्यकलापों से नाराज हैं। अतः पुराने पार्षदों के सिर नाकामी का ठीकरा फोड़ शीर्ष नेतृत्व जनता की नाराजी से उबर जायेगा। वास्तव में भाजपा फिर से इसी फार्मूले की बाबत तीनों महानगर निगमों पर काबिज होने में सफल रही।
आगामी लोकसभा चुनाव में भी हो सकता है भाजपा अपने दिल्ली में आजमाए सफल फार्मूले को लागू करना चाहती हो। शीर्ष नेतृत्व अपनी नीतियों की विफलता का ठीकरा सांसदों के सिर फोड़कर स्वयं को दूध का धुला घोषित कर सकता है। जनता के सामने वह नए चेहरे भेजकर स्पष्ट संदेश देना चाहेगा कि भाजपा नेतृत्व जनता की उपेक्षा बर्दाश्त नहीं करेगा। इसीलिए इस बार ऐसे चेहरों को मैदान में उतारा है जो जनसरोकारों को गंभीरता से लेकर जनता और देश की सेवा को तत्पर रहें।
यदि दिल्ली चुनाव का यह फार्मूला अपनाया गया तो इससे भाजपा को अपनी नाकामियां छुपाने का विश्वसनीय बहाना मिलेगा। इसी के साथ गत चुनाव में केवल मोदी के नाम पर जीते कंवर सिंह तंवर को भी अपनी जमीनी ताकत का अहसास हो जायेगा।
-टाइम्स न्यूज़ गजरौला.