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यादव से पीछा छूटा तो योगी उसी राह पर, बल्कि उससे भी दो कदम आगे चल निकले. |
चन्द किसानों का कर्ज समाप्त करने से चर्चा चल पड़ती है कि इससे सरकारी खजाने पर बोझ पड़ता है लेकिन विज्ञापनों के खर्च पर असीमित धन लुटाने से खजाने पर कोई आंच नहीं आती। विज्ञापनों पर खर्च की भी सीमा तय की जानी चाहिए। सरकारें वाहवाही लूटने और बिना कुछ किए अथवा किए से अधिक प्रचारित कर श्रेय लूटने के लिए इन विज्ञापनों पर पानी की तरह जनता की गाढी कमायी को बहा रही हैं। इसे नियंत्रित किया जाना होगा।
चुनावों से पूर्व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पिछली सभी सरकारों के विज्ञापनों के रिकार्ड ध्वस्त कर सूबे के अखबार सरकार की झूठी-सच्ची उपलब्धियों से भरवा दिए। विज्ञापनों में उत्तर प्रदेश वाकई सर्वोत्तम प्रदेश दिखाया जा रहा था जबकि जमीनी हकीकत इसके उलट थी। ऐसे में विज्ञापनों में हाथ उठाकर हंसते हुए अखिलेश को चुनावी नतीजों के बाद रोना पड़ा। जनता ने अपने धन के दुरुपयोग की उन्हें सजा दी। परंतु यादव से पीछा छूटा तो योगी उसी राह पर, बल्कि उससे भी दो कदम आगे चल निकले। उन्हें सत्ता की चकाचौंध ने योगी से सत्ताभोगी बना दिया। हाल ही में हुए चार उपचुनावों में मिली शिकस्त को दरकिनार कर विज्ञापनों के सहारे अगले चुनाव की तैयारी में हैं।
दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने विज्ञापनों के लिए एक फंड निर्धारित करना चाहा तो तमाम भक्त टीवी चैनलों वालों में चीख पुकार मच गयी थी जबकि मोदी और योगी के विज्ञापनों के असीमित खर्चों पर वे मौन साधे हुए हैं।
-जी.एस. चाहल.