बरसात में डूबते भारत के शहर : क्या यही है मोदी की स्मार्ट सिटी?

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पिछले चार सालों से शहरी क्षेत्रों में शहरी विकास के दावे और शोर खूब मचाया गया लेकिन हुआ कुछ नहीं.
देश की राजधानी दिल्ली और आर्थिक राजधानी मुम्बई में चारों ओर जल ही जल भरा है। सड़कें धंस रही हैं। इमारतें धराशायी हो रही हैं। लोग मर रहे हैं तथा नदी बनी सड़कों से गुजरना मुश्किल ही नहीं बल्कि कई जगह नामुमकिन भी हो गया है। दिल्ली महानगर निगम के मुख्यालय के पास सड़कें पानी से लबालब हैं। यदि ऐसा रहा तो हमारे देश के नगरों और महानगरों का क्या हाल होगा?

चार साल से देश के प्रधानमंत्री और उनके चाटुकार भाजपा नेता चीख-चीख कर देश के नगरों को स्मार्ट सिटी बनाने का शोर मचा रहे हैं। इसके लिए कई सौ नगरों की सूचियां बनायी गयीं। शोर मचता रहा है कि शहरों को स्मार्ट बनाने की दिशा में तेजी से काम हो रहा है। इसके प्रचार-प्रसार में ही इतना धन खर्च हो गया जिसमें एक शहर का विकास जरुर हो जाता।

बारिश ने स्मार्ट सिटी के दावों की पोल खोल कर रख दी। शहरों की सड़कों, पुलों का तो बुरा हाल है ही, जबकि नाले नालियों तक की सफाई और जल निकासी की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। इन मदों में खर्च धन का एक बड़ा भाग महानगर निगमों, नगर निगमों तथा पालिका बोर्डों के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। मुम्बई और दिल्ली जहां लम्बे समय से भाजपा का कब्जा है, दोनों महानगरों में विकास के लिए जितना धन आता है, उसे ईमानदारी से खर्च किया जाता तो ये शहर कभी के स्मार्ट सिटी बन गये होते। जब से 'न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ वाले आए हैं, तब से शहरों की जो हालत हुई है उसकी पोल बरसात ने खोल दी है।

बार-बार अपनी सत्ता भागीदार पार्टी भाजपा को कोसने वाली शिवसेना का मुम्बई महानगर पर कब्जा है। सबसे बड़े बजट की यह नगर इकाई आज सबसे बदतर हाल में है। पानी से लबालब सड़कों के गड्ढों में गिरकर लोगों की मौतें हो रही हैं। दुनिया भर के कर अदा करने वाले नागरिकों का यहां सबसे बुरा हाल है।

गांवों में घटते रोजगार के अवसरों और बढ़ती आबादी ने शहरों पर आबादी का बोझ बढ़ाया है। जिस तेजी से शहरों पर आबादी का दबाव बढ़ रहा है उस अनुपात में वहां विकास तथा जन सुविधाओं का विस्तार नहीं हो रहा। शहरी जन जीवन को असामान्य बनने देने में यह सबसे बड़ी बाधा है। किसी भी सरकार ने इस दिशा में गंभीरता से विचार करना जरुरी नहीं समझा, केवल वोट की राजनीति के चलते लोगों से ऐसे-ऐसे वायदे कर दिए गये जिन्हें पूरा करने की किसी भी नेता के पास कोई कारगर नीति और साहस नहीं।

पिछले चार सालों से शहरी क्षेत्रों में शहरी विकास के दावे और शोर खूब मचाया गया लेकिन हुआ कुछ नहीं। विकास के नाम पर धन भी बजट में रखा गया, परंतु यह परखने वाला कोई नहीं कि वह कहां खर्च हुआ? किस-किस की जेब में गया? विकास में कितना लगा?
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स्मार्ट सिटी बनाने का जो शोर सरकार मचा रही है, वह केवल वोट बटोरने की एक चाल है। कार्यकाल पूरा होने को आया और देश के सैकड़ों शहरों की सूरत बदलने का वादा करने वालों ने एक शहर तो क्या मामूली गांव तक को स्मार्ट नहीं बनाया।

इसके विपरीत शहरी जीवन की सामान्य दिनचर्या को और कठिन ही बनाया गया है। नयी-नयी मुसीबतें जन्म ले रही हैं। शहरों की सड़कें टूटी-फूटी हैं, जलभराव से गंदगी हो गयी है। लोग नियम कानून ताक पर रख अवैध कालोनियां बना रहे हैं। सड़कें जलभराव से नदियां बन गयी हैं। प्रदूषण के कारण सांस लेना दूभर है। क्या इसी तरह की होती है स्मार्ट सिटी? क्या इसी रफ्तार से बढ़ती रहेगी देश की आबादी? तब तो बन गयी स्मार्ट सिटी!

-जी.एस. चाहल.

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