![]() |
दशकों से चल रही गठबंधन राजनीति को छोटे चौधरी समझने में विफल रहे हैं. |
वैसे तो पूरे भारत में एक से बढ़कर एक घाघ कूटनीतिज्ञ नेता मौजूद हैं लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार में मौकापरस्त नेता कुछ ज्यादा ही हैं। चलती गाड़ी में सवार होने वाले नेताओं की यहां भरमार है। यहां यह कोई मायने नहीं रखता कि ईमानदार और जनसेवा करने वाले नेता को लोग विजयी बनायेंगे।
धर्म और जातीय राजनीति यहां बदस्तूर जारी है। जहां राष्ट्रीय दलों कांग्रेस और भाजपा ने उसे साम्प्रदायिक बनाने और क्षेत्रीय नेताओं ने जातीय आधार बनाये रखने में पूरा प्रयास किया है। यही दौर आज भी जारी है। ऐसे मामलों को भुनाने में जो सिद्धहस्त है वही सत्ता प्राप्त करता रहा है।
चौ. चरण सिंह के चारपाइ पर गिरते ही उनकी राजनीतिक विरासत को हड़पने वाले उत्तर प्रदेश से हरियाणा तक कई क्षत्रप उत्पन्न हो गए। चौ. अजीत सिंह और उनकी बहन सरोज वर्मा में ही इसके लिए विवाद था। सरोज की असमय मृत्यु से भले ही भाई-बहन विवाद खत्म हुआ लेकिन चौ. चरण सिंह के पुराने शिष्य मुलायम सिंह यादव ने स्वयं को उनका वारिस घोषित कर उत्तर प्रदेश की किसान राजनीति पर कब्जा जमाने में सफलता हासिल की।
उधर चौ. चरण सिंह के नाम के सहारे किसानों का अभूतपूर्व समर्थन पाने वाले भाकियू सुप्रीमो चौ. महेन्द्र सिंह टिकैत को अपने साथ मिलाये रखने में भी चौधरी अजीत सिंह सफल नहीं हो सके। यह उनके राजनीतिक कुप्रबंधन की अकुशलता का बड़ा प्रमाण है। इसी कारण टिकैत के चन्द सत्तालोलुप शिष्यों ने उनके बेटों को आगे कर राजनीति में कदम रखने का प्रयास किया। टिकैत के एक भी उम्मीदवार की जमानत तक नहीं बची। लेकिन वह छोटे चौधरी की राजनीति को चौपट करने का काम कर गए। यही नहीं इसका खामियाजा भाकियू संगठन को भी भुगतना पड़ा। उसका जनाधार और हैसियत बहुत नीचे चली गयी।
उधर हरियाणा में चौ. देवीलाल ने चरण सिंह का वारिस स्वयं को घोषित कर दिया तथा सूबे की किसान राजनीति पर अजीत सिंह को निष्प्रभावी बनाने में सफलता पायी। भले ही आज उनके परिवार में आपसी उठापटक ने उनकी विरासत को तहस-नहस कर दिया।
देश में दशकों से चल रही गठबंधन राजनीति को छोटे चौधरी समझने में विफल रहे हैं। कई बार धोखा खाने के बावजूद वे सपा नेताओं के झांसे में आते रहे हैं जबकि उनके लिए सबसे मुफीद कांग्रेस रही है। उतार-चढ़ाव को नजरअंदाज कर उन्हें कांग्रेस के साथ ही रहना चाहिए था। 2019 में उन्हें कांग्रेस के साथ मिलकर मैदान में आना चाहिए। बार-बार इधर-उधर लुढ़कने से यही उनके हक में है। आज भी उत्तर प्रदेश में उनके कट्टर समर्थकों की खासी तादाद है। लम्बे राजनीतिक सफर में उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिल चुका होगा।
~जी.एस. चाहल.