बसपा नेतृत्व की गलतफहमी के शिकार जयदेव और नौशाद

जयदेव और नौशाद
जयदेव सिंह और नौशाद इंजीनियर ने मजबूत किया है बसपा का जनाधार.
संगठन को अनुशासित बनाए रखने के नाम पर बसपा सुप्रीमो मायावती सबसे सख्त मानी जाती हैं। ऐसे मामलों में जहां वे त्वरित कार्रवाई करती रही हैं, वहीं कई बार उनके द्वारा जल्दबाजी में ऐसे लोगों को भी पार्टी से बेदखल किया गया जिनका कोई कसूर नहीं था बल्कि वे बसपा के समर्पित कार्यकर्ता के रुप में काम कर रहे थे। चन्द चाटूकार नेताओं के कहने मात्र से यह होता रहा है, हालांकि मायावती बिना किसी परवाह के अपना फैसला लेती हैं और पीछे मुड़कर नहीं देखतीं।

जिले में वे इसी आदत के कारण कई मजबूत और पार्टी के हमदर्द तथा जुझारु नेताओं के पर कतरती रही हैं या बाहर का रास्ता दिखाती रही हैं। संगठन में कई बार अनावश्यक फेरबदल कर पार्टी में मजबूत जनाधार तैयार करने वाले समर्पित और बेकसूर नेताओं तक को यहां खामियाजा भुगतना पड़ा।

यदि विधानसभा क्षेत्रवार अमरोहा जनपद पर निगाह दौड़ाई जाये तो नौगांवा सादात के जयदेव सिंह तथा अमरोहा में नौशाद इंजीनियर जातीय जनाधार के हिसाब से जनपद में भी मजबूत हैं। एक पार्टी में जाट समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है तो दूसरा मुस्लिम समुदाय के सबसे बड़े सैफी समुदाय का नेता है। लोकसभा चुनाव में गठबंधन की ओर से दो ऐसे चेहरे हैं जिनमें से किसी एक को सामने लाया जाता तो बसपा सफल हो सकती थी। जयदेव सिंह भाजपा की ओर झुके जाट समुदाय के अधिकांश मतों पर पकड़ रखते हैं। साथ ही अल्पसंख्यक वर्ग और दलित मतों पर भी उनकी पकड़ है। वैसे भी ये दोनों वर्ग गठबंधन के साथ रहेंगे। ऐसे में जाट समुदाय का समर्थन जिस ओर जायेगा विजय उसी की होगी। क्या सपा-बसपा को ऐसे में जयदेव सिंह से मजबूत कोई उम्मीदवार मिल सकता है।

उधर नौशाद इंजीनियर के अलावा जनपद में कोई बड़ा मुस्लिम चेहरा नहीं है। महबूब अली, कमाल अख्तर और नौशाद अली एकजुट होते हैं तभी सपा-बसपा गठबंधन मुस्लिम मतदाता एक साथ आयेंगे। मात्र किसी अफवाह के आधार पर उन्हें बाहर करना बसपा के लिए खतनाक होगा।

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जनपद के सभी दलों में भीषण गुटबंदी है। लेकिन सपा या भाजपा ने फिर भी अपने किसी नेता या कार्यकर्ता के खिलाफ कठोर कदम नहीं उठाया। ऐसे में बिना किसी ठोस सबूत के मात्र एक-दो गुटबाज नेताओं पर भरोसा कर जयदेव सिंह और नौशाद अली को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना बसपा द्वारा अपने हाथ से अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मारना है। इस फैसले पर बसपा के कई नेताओं ने अचम्भा जताया है तथा कई ने बसपा सुप्रीमो को पत्र भेजकर जांच की मांग की है। साथ ही इस फैसले को पार्टी के लिए घातक करार दिया है। कई नेता ऐसे भी हैं जो अपना मुंह बंद किए हैं जबकि दूसरे गुट के लोग इस फैसले से खुश हैं तथा इस निर्णय को पार्टी हित में मान रहे हैं।

-टाइम्स न्यूज़ अमरोहा.