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संसदीय चुनाव में गठबंधन के साझा उम्मीदवार के कयास जारी. |
जातीय समीकरणों में यहां दलित और जाट वोट सबसे अधिक हैं जबकि मुस्लिम समुदाय उनसे भी बड़ी संख्या में है। यदि गठबंधन सपा, बसपा और रालोद में बनता है तो उपरोक्त तीन विशाल वोट समूहों में यादव समुदाय भी जुड़ेगा। ऐसे में इस सीट पर गठबंधन प्रत्याशी को हराना भाजपा के लिए कठिन बल्कि नामुमकिन भी होगा। कांग्रेस गठबंधन से अलग रहती है तो वह भाजपा और गठबंधन, दोनों ही उम्मीदवारों के वोट काटेगा।
गठबंधन की खबर ने भाजपा की नींद उड़ा दी है फिर भी यहां से टिकट के दावेदारों की कमी नहीं। इस बार केवल इसी सीट पर ही नहीं बल्कि पूरे सूबे में भाजपा ऐसे उम्मीदवारों को मैदान में उतारेगी जिनकी व्यक्तिगत पकड़ मतदाताओं पर हो, इस बार पार्टी या मोदी लहर के बल पर विजय पाना नामुमकिन होगा। भाजपा के मौजूदा सांसद कंवर सिंह तंवर जिस मोदी लहर पर सवार थे, ऐसा इस बार संभव नहीं और उनका अपना जातीय आधार बहुत कमजोर है इसलिए भाजपा को नये और दमदार उम्मीदवार की दरकार होगी।
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यदि ताजा गठबंधन सीट बसपा को देता है तो उसे यह सोचकर उम्मीदवार उतारना होगा कि उसे मुस्लिम समुदाय के साथ यहां के दलित और जाट समुदाय में भी स्वीकार किया जाये। यही सपा को सीट मिलने पर भी प्रभावी होगा। सपा यदि मदन चौहान को उतारेगी तो भाजपा को पराजित करना आसान रहेगा। बसपा यदि जयदेव सिंह को लाती है तो जाट समुदाय भाजपा की ओर जाने से रुक सकता है तथा गठबंधन की जीत आसान होगी। कई मुस्लिम नेता भी सपा तथा बसपा में मजबूत माने जा रहे हैं लेकिन ऐसा होने से यहां भाजपा साम्प्रदायिक धु्रवीकरण के सहारे आसानी से जीत हासिल कर लेगी। जाट अथवा चौहान दो बड़े वोट बैंकों में मजबूत सेंधमारी के बिना यहां भाजपा को हराना आसान नहीं होगा। जबकि भाजपा को भी मजबूत उम्मीदवार के बिना जीत की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।
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~टाइम्स न्यूज़ अमरोहा.