गजरौला में बढ़ते प्रदूषण से लोगों में रोष, स्थायी समाधान की मांग

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गजरौला की एक दर्जन इकाईयां प्रदूषण वाहक की भूमिका में हैं.

गजरौला में औद्योगिक प्रदूषण कम होने की बजाय बढ़ता जा रहा है। जल तथा वायु इतने प्रदूषित हो गए कि पूरी आबादी पर खतरनाक बीमारियों का खतरा उत्पन्न हो गया है। एक साल में यहां हुई कई मौतें प्रदूषण के कारण बतायी जा रही है। इनमें 50 से साठ आयु के कई लोग फेफड़ों और हृदयघात के शिकार हुए। जबकि 30 से 40 वर्ष की आयु के अनेक युवक ब्लड प्रेशर, हृदय रोग तथा शुगर जैसे भयंकर रोगों की चपेट में हैं। अस्थमा के मरीजों की तादाद बढ़ रही है और यह सबसे बड़ी चिंता है कि नवयुवकों में कई ऐसी बीमारियां फैल रही हैं जो साठ साल के बाद प्रायः दिखाई देती थीं। जिम्मेदार लोग सब कुछ जानते हुए भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहे। नगर के छोटे से मोहल्ला विजयनगर में पचास साल के पूर्व प्रधान इस्माइल तथा उनके बड़े भाई की हृदयघात से गत वर्ष अचानक मौत हो गयी। इसी मोहल्ले के निवासी नैपाल सिंह जिला पंचायत सदस्य भी तभी हृदयघात से चल बसे। एक व्यापारी लौकेश शर्मा के हृदय का भी ऑप्रेशन हुआ। कई अन्य लोग इस तरह की बीमारियों से ग्रस्त हैं। नाईपुरा, सुल्तानगर, तिगरिया, लक्ष्मी नगर सहित कई मोहल्लों में अस्थमा, चर्म व नेत्र रोग तथा हृदयघात के अनेक मजदूर अपना इलाज करा रहे हैं।

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नगर के सबसे पुराने चिकित्सक डॉ. श्याम सिंह का कहना है कि केवल शहर ही नहीं बल्कि दूरदराज के अनेक गांवों के लोग औद्योगिक प्रदूषण की मार झेल रहे हैं। जागरुक लोगों को इसके खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठानी होगी। विकास के नाम पर विनाश को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। चन्द उद्योगपति लाखों लोगों के जीवन के बदले अपनी जेबें भरें यह अक्षम्य है।

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युवा व्यापारी तथा सामाजिक कार्यकर्ता नवीन कुमार गर्ग ने बढ़ रहे प्रदूषण पर चिंता और रोष व्यक्त करते हुए कहा कि अब यह समस्या सीमा लांघ चुकी। जुम्मेदार लोगों को आगे आना चाहिए। जनप्रतिनिधियों तथा अफसरों के भरोसे के बजाय इसके लिए जनता को फैसला लेकर उपाय खोजना होगा।

मानवाधिकार संगठन कार्यकर्ता डॉ. एलसी गहलौत ने कहा है कि एनजीटी ने पिछले साल शिकायत मिलने पर यहां की प्रदूषण वाहक इकाईयों पर दस-दस लाख जुर्माना लगाया लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ा। इसके विपरीत प्रदूषण और बढ़ गया। इसके लिए क्षेत्रीय जनता को जागरुक कर बड़ी तैयारी से काम करना होगा।

मंडी धनौरा के चिकित्सक डॉ. बीएस जिन्दल ने कहा कि गजरौला के औद्योगिक प्रदूषण का प्रभाव दूर-दूर तक है। हवा का रुख बदलने पर दुर्गन्ध धनौरा तक भी आती है। इन उद्योगों ने गजरौला और दूर दराज के गांवों की वायु, वनस्पति, पशु, पक्षी, मानव तथा जल और मिट्टी तक में जहर घोल दिया। इसका उपाय खोजा जाना बहुत जरुरी है। गजरौला के निवासी इसका बड़ा खामियाजा भुगत रहे हैं। उन्हें अपनी आंखें खोलनी होंगी। दूसरे लोग तभी उनके साथ खड़े होंगे।

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-टाइम्स न्यूज़ गजरौला.