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पुल निर्माण को एनओसी देने में अधिकारियों को दिक्कत है.
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पिछले पांच वर्षों में हस्तिनापुर वन्य क्षेत्र में धनौरा से लेकर तिगरी तक आम के कई हरे भरे बाग कट गए। सैकड़ों बल्कि हजारों ऐसे पेड़ काट दिए गए जिनके काटने को मुश्किल से स्वीकृति मिलती है। अनेकों भट्टे यहां दशकों से धुंआ उगल रहे हैं जबकि इस वन्य क्षेत्र में उन्हें स्वीकृति नहीं मिलनी चाहिए। यहां खनन पर पूर्ण प्रतिबंध है। उनसे न तो वन्य जीव जंतुओं को कोई खतरा है और न ही खनन से कोई क्षति। यह सब भ्रष्ट अधिकारियों की भट्टा संचालकों से सांठगांठ का परिणाम है।
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बात यहीं तक नहीं है। इससे भी आगे बढ़कर वन विभाग के अधिकारी हस्तिनापुर वन्य क्षेत्र की प्राकृतिक सम्पदा का दोहन करने वालों के हाथ की कठपुतली बने हुए हैं। यहां बहुतायत से उगने वाले प्राकृतिक खस घास की जड़ें वन अधिकारियों की मिलीभगत से प्रतिवर्ष दिसम्बर माह में वन माफियाओं को खोदने की आजादी दे दी जाती है। यह करोड़ों का काला कारोबार है जिसके धंधे में वनाधिकारी संलिप्त हैं। सरकंडे की तरह लेकिन चिकने पत्तों वाली इस घास की जड़ों के तेल की कीमत भारतीय बाजार में 20 से 30 हजार लीटर तक रहती है। कई अन्य प्राकृतिक वन सम्पदायें निर्बाध बेची जा रही हैं। नवम्बर, दिसम्बर में छापा मारकर इन्हें पकड़ा जा सकता है लेकिन जिम्मेदार खामोश हैं।
जनहित के कार्य पुल निर्माण में भी यही अफ्सर बाधा बने हैं। विधायक को लखनऊ से ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करानी चाहिए।
-टाइम्स न्यूज़ मंडी धनौरा.