![]() |
देश अधिकांश मोर्चों पर बहुत पीछे चला गया जिसे पटरी पर लाना निकट भविष्य में आसान नहीं. |
कई चिल्लाऊ टीवी चैनलों ने चुनाव से पूर्व जिस प्रकार सरकार का अंध-गुणगान किया और विपक्ष को लगातार कटघरे में खड़ा किया, उससे जनता में वस्तुस्थिति का भ्रामक संदेश गया। भाजपा नेताओं से भी कई कदम आगे बढ़कर कई चैनल जनता में विपक्ष को दोषी और सरकार को निर्दोष सिद्ध करने की प्रतिस्पर्धा में जुटे रहे।
31 मार्च को समाप्त वित्त वर्ष के सरकारी आंकड़े अब सामने आए हैं। जिनसे पता चलता है कि देश अधिकांश मोर्चों पर पांच साल में आगे बढ़ने के बजाय पीछे चला गया है।
विकास का राग अलापने की पोल खोलते सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि साल 2017-18 में देश रोजगार के क्षेत्र में 45 साल पीछे चला गया। श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक मोदी सरकार का पिछला कार्यकाल समाप्त होते-होते बेरोजगारी दर 6.1 फीसदी पर पहुंच गयी। केन्द्र तथा भाजपा शासित राज्यों में रिक्तियां होने के बावजूद उन्हें नहीं भरा गया। नए रोजगार सृजन का हाल उससे भी बुरा है। जिस देश के कामगार नवयुवक हाथ पर हाथ धरे बैठ जायेंगे उसका विकास भला कैसे हो सकता है। यही कारण है कि 31 मार्च को समाप्त तिमाही में जीडीपी की रफ्तार वहीं पहुंच गयी जहां से मोदी सरकार ने अपना कार्यकाल शुरु किया था। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि देश सकल घरेलू उत्पाद के मोर्चे पर आगे बढ़ने के बजाय पांच साल पीछे चला गया। यह आंकड़ा देश के औद्योगिक, कृषि तथा दूसरे क्षेत्रों में गिरावट को दर्शाता है। क्या रोजगार सृजन 45 साल पीछे जाना और जीडीपी पांच साल पिछड़ जाना देश के आर्थिक विकास की स्याह तस्वीर पेश नहीं करता?
यही नहीं कोयला, क्रूड, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, सीमेंट और बिजली जैसे आठों कोर सेक्टरों की वृद्धि दर घटकर अप्रैल में लगभग आधी रह गयी है। यह पिछले साल अप्रैल में 4.7 थी जो बीती अप्रैल में 2.6 पर आ गयी है। यह कौनसी तरक्की का संदेश है? क्या यह गिरते विकास का सबूत नहीं?
घटता निर्यात हमारे अन्तार्राष्ट्रीय व्यापार का लचर प्रबंधन है। मोदी सरकार के दोबारा शपथ ग्रहण करते ही अमेरिका ने उसे तरजीह व्यापार के दर्जे से बाहर कर भारत को बड़ा झटका दिया है। इससे हमारा निर्यात बुरी तरह प्रभावित होगा।
रेल संचालन भारी अवरोध का सामना कर रहा है। नयी ट्रेनें तो क्या चलतीं, पिछली सरकारों द्वारा चलायी ट्रेनों को भी हफ्तों तथा कई ट्रेनों को महीनों बंद रखा जा रहा है जबकि पांच साल पहले बुलेट ट्रेन के सपनों के साथ भाजपा कई राज्यों में सत्ता पाने में सफल रही। पांच साल में रेल बजट ही आम बजट में मिलाकर गुठलियों में छिलके मिलाने की कहावत को चरितार्थ कर दिखाया।
उड्डयन क्षेत्र का हाल यह हो गया है कि कई कम्पिनियां बरबाद होकर विमान बेचने को मजबूर हैं। सरकारी हैलीकाप्टर पवन हंस भी सरकार बेच रही है। अभी खरीददार नहीं मिल रहे। बीएसएनएल का कचूमर निकल चुका है।
देश की आर्थिक रीढ़ मानी जाने वाली बैंकें नोटबन्दी और जनधन खाते खुलने के बाद से भारी घाटे में चली गयी हैं। जबकि चार साल पहले तक ऐसी बैंकें भारी मुनाफा कमा रही थीं।
कई बैंक दूसरी बैंकों में मिलाकर उनका अस्तित्व ही समाप्त कर दिया। बड़े घाटे वाली कई अन्य बैंकों की सूची भी तैयार थी। उसे नयी सरकार अंजाम तक पहुंचायेगी। बैंकों से अरबों के कर्ज लेने वाले बड़े उद्योगपति फिर से मोदी सरकार आने से खुश हैं।
भक्त मीडिया, सरकार अथवा चन्द पूंजीपति सरकार की कार्यप्रणाली की चाहें कितनी तारीफ करें लेकिन पिछले पांच वर्षों में देश अधिकांश मोर्चों पर बहुत पीछे चला गया जिसे पटरी पर लाना निकट भविष्य में आसान नहीं।
-जी.एस. चाहल.