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प्राइमरी स्कूल, बैंक, डाकघर, पेयजल, पंचायतघर, अस्पताल आदि कुछ भी नहीं गांव में. |
गांव में दो चार परिवारों को छोड़ शेष लोग लघु और सीमांत कृषक हैं जो अपने खेतों के साथ गजरौला के उद्योगों में काम कर मजदूरी के सहारे जीवन यापन को मजबूर हैं। अधिकांश लोगों के न तो बेहतर मकान और आवास हैं और न ही यहां बिजली, पानी तथा दूसरी जरुरी सुविधायें पर्याप्त हैं।
गांव के जागरुक नवयुवक कमल सिंह, नरेश सिंह, अवधेश कुमार, कृष्ण कुमार, निरंजन सिंह, डोरी लाल आदि कई साल से गांव में स्कूल बनवाने को प्रयासरत हैं। इनका कहना है कि वे शिक्षा जैसी मूलभूत आवश्यकता के लिए विद्यालय बनवाने को डीएम, पूर्व सांसद कंवर सिंह तंवर, विधायक महेन्द्र सिंह खड़गवंशी आदि से कह चुके। खड़गवंशी को उन्होंने गांव में आमंत्रित कर उनका जोरदार स्वागत भी किया। युवकों का कहना है कि वे इस बात से काफी खुश थे कि पहली बार उनके समुदाय का कोई युवा विधायक बना है। उनसे उम्मीद थी कि वे कम से कम एक स्कूल तो बनवा ही सकते हैं लेकिन दो वर्ष बीतने पर वे मुड़कर गांव की तरफ नहीं आए। गांव की युवा टोली अभी भी प्रयासरत है तथा इस बार मुख्यमंत्री तक से मिलने का प्रयास करेगी।
हमें नवयुवकों ने बताया कि इस गांव के साथ किसान सम्मान योजना में भी छलावा किया गया है। चुनाव पूर्व छोटे किसानों को मिली दो हजार की पहली किश्त भी इस गांव में किसी को नहीं मिल पायी। जबकि यहां अधिकांश किसान लघु और सीमांत हैं।
गांव के साथ विकास और सरकारी सहायता की तमाम योजनाओं में भेदभाव बरता गया है। यही नहीं जिला पंचायत, विकास खंड स्तर, सांसद और विधायक निधि और केन्द्र और राज्य सरकार की तमाम योजनाओं में से होने वाला विकास आजादी के सात दशक बाद भी इस गांव तक न पहुंचना, इस छोटे से गांव के साथ सबसे बड़ा भेदभाव है।
नवयुवक यह जरुर बताते हैं कि उनके गांव के बीच से होकर गुजर रही गजरौला और तिगरिया खादर जाने वाली सड़क पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष कमलेश आर्य ने बनवायी। अन्य किसी जनप्रतिनिधि ने गांव की सुध नहीं ली।
गांव के मौजूदा प्रधान कुंवर पाल सिंह खड़गवंशी इससे पूर्व प्रधान संघ के ब्लॉक अध्यक्ष भी रह चुके लेकिन अपने गांव में एक अदद प्राथमिक स्कूल बनवाने में सफल नहीं हो सके। उनका कहना है कि उनके प्रयास से एक बार ऊपर से स्कूल के लिए जगह तलाशने टीम आयी तो तत्कालीन ग्राम प्रधान ने यह कहकर उसे वापस कर दिया कि भूमि उपलब्ध नहीं है।
गांव के पिछड़ेपन का बड़ा कारण शिक्षा का अभाव और जनप्रतिनिधियों का उपेक्षित रवैया है। बीस-पच्चीस साल की एक युवा टीम साहस के साथ गांव की प्रगति के काम में जुटी है जिसका पहला कदम गांव से अशिक्षा का अंधेरा दूर करना है। उसके बाद वे गांव के प्रयास के एक-एक पहलू पर काम करते जायेंगे। प्रधान कुंवर पाल सिंह खड़गवंशी ने कहा कि वे भी ऐसे युवाओं के साथ गांव की प्रगति में जुटेंगे।
औद्योगिक प्रदूषण की मार से भी त्रस्त है सदुल्लापुर
यहां के औद्योगीकरण से भले ही गांव के चन्द लोगों को थोड़ा बहुत रोजगार मिला हो लेकिन उससे अधिक क्षति प्रदूषण की मार से हो रही है। कई तरह की जानलेवा बीमारियों की गिरफ्त में गांव के लोग, पशु और फसलें हैं। सूखते पेड़ों के नीचे बंधे कमजोर पशु, औद्योगिक प्रदूषण के दुष्प्रभाव के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
लोगों का कहना है कि कृषि के साथ पशु-पालन कर वे दुग्ध व्यवसाय करते रहे हैं लेकिन औद्योगिक प्रदूषण ने उनका धंधा चौपट कर दिया। पशु कमजोर और बीमार पड़ते जा रहे हैं। गांव में पशु अस्पताल न होने से दिक्कत और भी बढ़ गयी है। लोगों ने धीरे-धीरे पशु-पालन का धंधा कम कर दिया और दुग्ध व्यवसाय समाप्त हो गया।
स्त्री-पुरुष तथा बच्चों में वायु और जल प्रदूषण से चर्मरोग, अस्थमा तथा किडनी, हृदय और नेत्ररोग पनप रहे हैं। गजरौला के उद्योगों के तथाकथित एनजीओ के इस गांव भी किसी समस्या के समाधान को आगे आने को तैयार नहीं। सरकार से उन्हें कोई सहयोग आज तक नहीं मिला।
गांव की सीमा तीन विधानसभा क्षेत्रों को छूती है
सदुल्लापुर धनौरा विधानसभा क्षेत्र के शहर गजरौला से सटा है। उसका विकास खंड कार्यालय भी गजरौला में है लेकिन विधानसभा क्षेत्र हसनपुर है। तहसील भी हसनपुर ही है। विकास खंड और तहसील अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में होने से भी कई तरह के कार्यों के लिए गांव के लोगों को अलग-अलग भागना पड़ता है। यह भी इस गांव के लिए एक अलग परेशानी का सबब है। इस गांव की सीमा नौगांवा सादात, हसनपुर तथा धनौरा तीन विधानसभा क्षेत्रों को स्पर्श करती है।
-टाइम्स न्यूज़ गजरौला.