सरकारी विकास के दावों की पोल खोलते ग्रामांचलों के जर्जर सड़क मार्ग

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रात के अंधेरे में तो इन सड़कों से गुजरना खतरे से खाली नहीं है..
शहरों से गांवों को जोड़ने वाली जनपद अमरोहा की अधिकांश सड़कों की हालत कच्चे रास्तों से भी बदतर है। गजरौला से हसनपुर तक का प्रांतीय राजमार्ग भी खस्ताहाल है। जनपद की इन सड़कों से वाहनों को गुज़रते समय साईकिल से भी धीमी गति पर चलाना पड़ता है। साथ ही झटकों और उछलकूद के इस सफर में दोपहिया अथवा चौपहिया सभी तरह के वाहनों में भारी क्षति का खतरा बराबर बना रहता है। रात के अंधेरे में तो इन सड़कों से गुजरना खतरे से खाली नहीं।

उल्लेखनीय है कि केन्द्र में दस साल की यूपीए सरकार के दौरान अधिकांश गांवों को मुख्य सड़क मार्गों से जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत यहां सड़कों का जाल बिछाया गया। जिसमें मनरेगा के तहत भी लोगों को रोजगार मिला था। प्रदेश में इस दौरान बसपा और सपा की बारी-बारी से सरकारें बनीं। राज्य सरकार ने भी अपने स्तर से ग्रामांचलों में सड़कें बनवायीं और जहां-जहां जरुरत हुई सड़कों की समय रहते मरम्मत और चौड़ीकरण भी कराया गया।

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प्रदेश में दो वर्ष का कार्यकाल भाजपा ने पूरा कर लिया लेकिन नयी सड़कें बनाना तो दूर पुरानी सड़कों की मरम्मत तक का काम नहीं हुआ। जिला पंचायतों तथा खंड विकास क्षेत्रों के मद से भी इस दिशा में कोई काम नहीं हो रहा। यदि कहीं छोटी-मोटी सड़क बनायी भी गयी हैं तो उसके ढोल पीटने का काम ही अधिक हुआ है। भाजपा की केन्द्र सरकार ने बीते पांच सालों में सड़कों की ओर ग्रामांचलों में कोई विशेष काम नहीं किया। सड़कों को गड्ढा मुक्त करने के वायदे चुनाव के दौरान खूब हुए जो सत्ता मिलने के बाद हवा हो गए। केन्द्र और राज्य दोनों ही स्तर पर इस दिशा में धरातल पर कुछ नहीं हुआ।

पिछली मोदी सरकार के सड़क व परिवहन मंत्री नितिन गडकरी टीवी कैमरों के सामने तिगुनी गति से सड़के बनवाने के दावे करते रहे। पता नहीं किस लोक में वे सड़कें बनीं। धरातल पर तो टूटी-फूटी सड़कों के जाल बिछे हैं। गांवों में आकर देखें तो मीडिया वालों को भी पता लगे।

-टाइम्स न्यूज़ अमरोहा.