सत्तर साल से पुल की बाट जोहते खादरवासी : चुनावों में हर बार पुल निर्माण का वायदा होता रहा

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केन्द्र और राज्य दोनों जगह एक ही दल की सरकार का कोई लाभ यहां नहीं मिल रहा.
गंगा के खादर में बसे चकनवाला गांव के पास बाहा नाले के पार एक दर्जन से अधिक गांवों की किस्मत बदलने वाले पुल की मांग अभी तक पूरी नहीं हो सकी। सूबे में आजादी के बाद कई सरकारें आयीं और चली गयीं लेकिन किसी भी सरकार के कार्यकाल में सौ मीटर लम्बा पुल नहीं बन पाया। ऐसे में बरसाती मौसम में इन गांवों के लोगों के सामने दिक्कतों का पहाड़ खड़ा हो जाता है। परंतु लखनऊ में विशाल भवनों में बैठे सत्ताधीश किसी विधायक की फरमाईश सुनने तक को तैयार नहीं होते।

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बाहे के उस पार बसे चारों ओर पानी से घिरे गांवों को चकनवाला के पास धनौरा, गजरौला सहित शेष क्षेत्र से जोड़ने को सपा शासन में दो दशक पूर्व तत्कालीन मंत्री स्व. रमाशंकर कौशिक ने अस्थायी पीपा पुल बनवाया था। जिसे बरसात में तोड़ दिया जाता है और बरसात खत्म होने पर अगली बरसात तक फिर से जोड़कर चालू किया जाता है। बरसात में जल से भरे बाहे को पार करने का एकमात्र सहारा नाव रह जाता है। चकनवाला से बाहे तक तथा बाहे से खादर के गांवों तक सड़क बन चुकी लेकिन पुल के अभाव में उसका खास लाभ नहीं।

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गांवों में न तो कोई अस्पताल और न ही शिक्षा की उचित व्यवस्था। चन्द लोग अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए शहरों में किराये के कमरों में रहकर पढ़ाने की व्यवस्था करते हैं लेकिन ऐसा करना हर किसी के बूते के बस की बात नहीं। एक-दो झोलाछाप चिकित्सकों का सहारा इन लोगों को है जो मरहम पट्टी अथवा मामूली बीमारी में काम आते हैं। गर्भवती महिलाओं को प्रसव के दौरान बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ता है। लोग कई बार रात में ऐसा होने पर भारी परेशानी में पड़ जाते हैं। गांव से बाहे तक बैलगाड़ी आ जाती है जबकि बाहा पार करने को नाव का सहारा होता है लेकिन दूसरी ओर किसी सवारी का इंतजाम नहीं होता। ऐसे में मरीज के साथ बाइक नाव में लादकर बाद में उसके सहारे मरीज को किसी तरह गजरौला तक ले जाया जाता है।

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लखनऊ के सत्तासीन नहीं चाहते चकनवाला पुल बनवाना

जिस प्रकार यहां के विधायक पुल निर्माण की कोशिश कर रहे हैं उससे जाहिर होता है कि विधायक राजीव तरारा इसमें अपनी पूरी शक्ति का इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें दो वर्षों से मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री की ओर से लगातार आश्वासन मिल रहे हैं कि पुल शीघ्र बनेगा। एक-दो बार जिलाधिकारी के साथ संबंधित विभागों के दूसरे अफसर भी मौका मुआयना कर चुके। तब ऐसा लगा, मानो अब पुल बन ही जायेगा। फिर पता चला कि वन विभाग अनापत्ति प्रमाण-पत्र नहीं दे रहा। बाद में बताया गया कि जल्दी ही एनओसी मिल जायेगी। सवा दो साल से यही खेल चल रहा है जिससे जाहिर होता है कि उच्च स्तर से विधायक को भी भरमाया जा रहा है।

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यह सवाल हर कोई उठा सकता है कि मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री पुल निर्माण के निमित्त वन विभाग के अफसरों को आदेशित करें तो वे एनओसी में आनाकानी कैसे कर सकते हैं? प्रस्तावित पुल निर्माण स्थल के पास से दूर-दूर तक एक भी पेड़ नहीं और दोनों ओर से बन चुकी सड़कों को जोड़ने के लिए उसका निर्माण होना है। सरकार चाहे तो एक दिन में एनओसी मिल जायेगी। दरअसल सरकार ही पुल निर्माण नहीं चाहती। केन्द्र और राज्य दोनों जगह एक ही दल की सरकार का कोई लाभ यहां नहीं मिल रहा। सरकार की मंशा यहां के गरीबों की भलाई के काम में धन खर्च की नहीं। कोई विधायक कोशिश करे अथवा सांसद या मंत्री पुल निर्माण की उम्मीद लोगों को नहीं रही। सीसोवाली के लोग कहते हैं कि मौजूदा सरकार से भी उनका भरोसा टूटने लगा है। विधायक राजीव तरारा की इस दिशा में की जा रही कोशिश की ये लोग सराहना करते हैं।

-टाइम्स न्यूज़ मंडी धनौरा/गजरौला.