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सरकार चुनावों के मौके पर किसानों की तरफदारी करती नहीं थकती लेकिन उसके बाद शिकंजा कसना शुरु कर देती है. |
सरकार चुनावों के मौके पर किसानों की बार-बार तरफदारी करती नहीं थकती लेकिन उसके बाद उनपर शिकंजा कसना शुरु कर देती है। बिजली बिल बढ़ाना और गन्ना मूल्य घोषित न करना इसी की बानगी है। किसानों की मांग है कि बिजली बिल, डीजल और बीजों के दाम बढ़ाये गये हैं तो गन्ने के भाव भी बढ़ने चाहिए। भाकियू सहित तमाम किसान संगठन गन्ना मूल्य 450 रुपये करने की मांग कर रहे हैं, तो बढ़ती कृषि लागत के हिसाब से गलत नहीं हैं लेकिन सरकार की खामोशी से लगता है कि वह गन्ना मूल्य बढ़ाना नहीं चाहती।

वैसे भी सूबे की भाजपा सरकार के पिछले दो वर्षों से गन्ना मूल्य लगभग स्थिर है। उसे केन्द्र और राज्य चुनावों में किसानों का बिना मूल्य बढ़ाए ही समर्थन मिल गया, तो उसे बढ़ाने की जरुरत भी नहीं। किसान संगठन वैसे ही आपस में विभाजित हैं। ऐसे में वे सरकार पर दवाब बनाने में सफल नहीं हैं। गन्ना मूल्य बढ़ने की उम्मीद नहीं बल्कि उसे कम किए जाने की संभावना है। क्योंकि सरकार किसानों के बजाय मिलों को पैकेज दे रही है।
-टाइम्स न्यूज़ अमरोहा.