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संकेत मिल रहे हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव में फिर से दोनों नेता धनौरा से चुनाव लड़ना चाहते हैं. |
वैसे तो चुनावी माहौल में कान खड़े करने वाले नेताओं की खासी तादाद है लेकिन दो चेहरे इनमें विशेष हैं जो यहां से कभी नहीं जीते लेकिन अपने-अपने दलों की सरकारें बनने पर मंत्री पद का स्वाद चख चुके हैं। ये नेता हैं - डॉ. संजीव लाल तथा जगराम सिंह।

2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी ये दोनों क्रमशः बसपा और सपा के धनौरा से उम्मीदवार थे। दोनों मिलकर भाजपा उम्मीदवार राजीव तरारा के बराबर मत हासिल कर पाये थे। मजेदार बात यह रही कि भाजपा के राजीव तरारा यहां से पहली बार मैदान में थे जबकि दोनों पूर्व मंत्री यहां इससे पूर्व भी बुरी तरह पराजित हो चुके थे। पहली बार यहां से पराजित होने के बावजूद उन्होंने मंथन करना उचित नहीं समझा अथवा वे हार की वजह जानने में विफल रहे। 2017 में फिर से मैदान में उतर पड़े। इससे पूर्व वे क्षेत्र की ओर झांकने तक नहीं आये। केवल जातीय गुणाभाग अपने पक्ष में मानकर चुनाव में एक बार फिर से पराजय का मजा चखने में जुट गये। लोग उन्हें बरसाती मेंढक मानकर किनारा कर गये। लोग समझ गये कि केवल चुनावी मौसम में ये दोनों नेता उन्हें फुसलाने आ जाते हैं। चुनाव से पूर्व यहां भाजपा कार्यकर्ता के रुप में राजीव तरारा घर-घर जाकर लोगों से संपर्क साध कर उन्हें अपना बनाने में सफल रहे थे। यही वजह रही कि दो पुराने राजनीतिज्ञ जनता ने निष्क्रिय नेता मानकर नकार दिये।
लोकसभा के चुनावों के दौरान सपा-बसपा के गठबंधन से इन नेताओं में थोड़ी जान पड़ी तो वे एक-दो बैठकों में दिखाई भी दिए। लोकसभा चुनावों के परिणाम के साथ ही सपा-बसपा गठबंधन का गुब्बारा फूटा और ख्याली पुलाव पकाने वाले कई नेता सिर पकड़ कर बैठ गये।
वैसे तो चुनावी जय-पराजय में कई कारक और अनेक कारण होते हैं फिर भी लोगों के सुख-दुख में मौजूदगी वाले नेता को लोग स्वीकार करते हैं। समाज से कटे नेता जब वोटों के लिए जनता के बीच जाते हैं तो उन्हें आसानी से लोग स्वीकार नहीं करते। किसी एक या दो समुदायों के सहारे विजय पाना अब नामुमकिन है। सभी वर्गों के बीच पकड़ वाले नेताओं को पराजित कर पाना भी उतना ही कठिन बल्कि नामुमकिन है।

कई संकेत मिल रहे हैं कि डॉ. संजीव लाल और जगराम सिंह आगामी विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से धनौरा की ओर रुख करना चाहते हैं। यदि वे पिछली दो बार की तरह ठीक चुनावी बिगुल के साथ मैदान में उतरना चाहते हैं तो पराजय को जानबूझकर आमंत्रित कर रहे हैं। उन्हें मजबूती से लड़ाई के लिए अभी से सक्रिय होना होगा और लोगों के बीच बिना भेदभाव के साथ पहुंच कर उनकी हर संभव सहायता और सहयोग को तत्पर रहना होगा। विजय का स्वाद चखने को लम्बे संघर्ष की जरुरत है। ये दोनों नेता यहां से दो बार चुनाव लड़कर भी यहां के लोगों की नब्ज वैसे पहचान गये होंगे। जमीन पर सक्रिय नेता को कोई लहर प्रभावित नहीं कर सकती। अमरोहा में महबूब अली इसका जीता जागता उदाहरण हैं।
-टाइम्स न्यूज़ मंडी धनौरा.