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केजरीवाल की दूसरी बम्पर जीत और तीसरी बार मुख्यमंत्री के बनने पर मीडिया का रुख भी बदला है. |
कोई कुछ भी कहे दिल्ली विधानसभा की यह लड़ाई जनता और सत्ता की भारी शक्तिशाली सेना के बीच थी। एक ओर अपने मामूली दल बल के साथ केजरीवाल दिल्ली में किए जनहित के कार्यों की दुहाई दे रहे थे तो दूसरी ओर भाजपा जैसा सबसे शक्तिशाली सत्ताधारी दल प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, पांच मुख्यंमंत्री, कई पूर्व मुख्यमंत्री, दो सौ से अधिक सांसद तथा दिल्ली और निकटवर्ती राज्यों के लाखों कार्यकर्ताओं को लेकर चुनावी प्रचार में जुट पड़ा था। भगवा भेषधारी यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे सन्यासियों ने भी अरविन्द केजरीवाल को पराजित कराने में झूठे आरोपों की झड़ी लगाने में शर्म नहीं की। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह उनसे भी आगे निकल गये। नयी बनी छोटी-सी पार्टी को पराजित करने में भाजपा का भारी भरकम लश्कर कोई कमी नहीं छोड़ना चाहता था, इस लड़ाई में उसने जदयू और आरएलएसपी और एक अन्य दल के साथ मिलकर साझा चुनाव लड़ा। इस प्रकार चार दलों का यह मोरचा अकेले केजरीवाल के सामने नहीं ठहर सका। दिल्ली के समझदार लोगों ने भाजपा और उसके साथियों को मुश्किल से आठ सीटों तक ही जाने दिया। जबकि दूसरे बड़े राष्ट्रीय दल कांग्रेस को तो एक भी सीट नसीब नहीं हुई। केजरीवाल के आगमन से पूर्व दिल्ली में कांग्रेस और भाजपा का ही दबदबा था।
दिल्ली भारत का हृदय स्थल है जहां देश के सभी राज्यों के सभी वर्गों, भाषाओं तथा समूहों के लोग निवास करते हैं। ऐसे लोग समय-समय पर अपने गृह प्रदेशों में अपने मूल निवास पर भी आते जाते रहते हैं। लोगों से मिलते जुलते समय बहुत सी बातें होती हैं। केजरीवाल की लगातार दो बार की रिकॉर्ड विजय की चर्चा भी जरुर होती होगी और आगे भी यह सिलसिला जारी रहेगा।
केजरीवाल की दूसरी बम्पर जीत और तीसरी बार मुख्यमंत्री के बनने पर मीडिया का रुख भी बदला है। प्रिंट मीडिया के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी केजरीवाल और उनकी पार्टी के नेताओं के प्रति उदार होता जा रहा है। इससे पूर्व मीडिया के अधिकांश लम्बरदार अरविन्द केजरीवाल के प्रति उपेक्षा तथा भाजपा के प्रति बहुत ही उदार रुख अपनाये हुए थे। आम आदमी पार्टी के प्रवक्ताओं से बहुत ही अजीब-ओ-गरीब सवाल पूछे जाते रहे हैं जिन्हें मतदाता देखते और पढ़ते भी आ रहे हैं।
आम आदमी पार्टी की यह बड़ी जीत पूरे देश के मतदाताओं और राजनीतिक दलों के नेताओं को मंथन पर विवश कर गयी है। ऐसे लोगों की भारी संख्या है जो कांग्रेस सहित कई दलों को नकार कर अनचाहे नरेन्द्र मोदी के नाम पर भाजपा को लगातार दूसरी बार केन्द्र की सत्ता में पहुंचा चुके। इनका तर्क था कि विकल्पहीनता में उन्हें यह करना पड़ रहा है। वे बदलाव चाहते हैं लेकिन बेहतर विकल्प के अभाव में यही उचित समझते हैं। केजरीवाल के काम और ईमानदारी का प्रमाण उन्हें दिल्ली के लोगों ने दिया है। दिल्ली वाले दिल्ली में दोनों सरकारों का काम निकट से देख रहे हैं तथा उसी के आधार पर मतदान भी कर रहे हैं। इस चुनाव मेें भाजपा और कांग्रेस की पराजय और ट्टआप’ की विजय इसी का परिणाम है।
आम आदमी पार्टी को अब गंभीरता और सतर्कता से दूसरे राज्यों में भी कदम बढ़ाने चाहिए। लोगों ने केजरीवाल की ओर आशावादी नजरिए से देखना शुरु कर दिया है। देश बहुत बड़ा है। सारे राज्यों में ईमानदार, मजबूत और समर्पित कार्यकर्ताओं की बड़ी तादाद चाहिए। यह आसान काम नहीं है। इसके लिए ट्टआप’ की दिल्ली स्टेट से भी सक्षम टीम चाहिए। जिसके लिए समय और साधन भी चाहिए। केजरीवाल जैसे कर्मठ और साहसी व्यक्तित्व को इसके लिए जूझना ही होगा। देश को ऐसे नेतृत्व की महती दरकार है।
-जी.एस. चाहल.