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जिला पंचायत के पिछले चुनावों में सदस्य का चुनाव लड़ने वाले फिर से मैदान में उतरने को तैयार हैं. |
यह भी तैयारी बतायी जाती है कि ब्लॉक प्रमुख के लिए भी सीधी प्रणाली अपनायी जा सकती है। इसमें भी उपरोक्त दिक्कतों के कारण बदलाव किया जाने वाला है। हालांकि इस तरह की अभी कोई सरकारी घोषणा या आदेश जारी नहीं हुआ। कई भाजपा नेताओं की ओर से जारी चर्चाओं से ऐसी अटकलों पर भरोसा किया जा रहा है। इस तरह की अटकलों से उम्मीदवारों के कान खड़े हो गये हैं। ऐसे में कई ऐसे लोग जो जिला पंचायत का चुनाव लड़ने वाले हैं उन्होंने अभी से चिंतन शुरु कर दिया है। जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवारों की संख्या भी काफी अधिक हो सकती है।
जिला पंचायत के पिछले चुनावों में सदस्य का चुनाव लड़ने वाले फिर से मैदान में उतरने को तैयार हैं जबकि ऐसे कई लोग अध्यक्ष पद की दावेदारी भी ठोक रहे हैं। हालांकि उनमें से बहुत से सदस्य का चुनाव भी पिछली बार नहीं जीत सके।
सबसे अधिक उम्मीदवार भाजपा और बसपा की ओर से दावा ठोकने वाले हैं। सपा यहां उनके बाद है। पिछली बार सूबे में सपा और केन्द्र में भाजपा की सत्ता के बावजूद यहां बसपा काफी मजबूत थी। भाजपा सपा-बसपा दोनों से पीछे थी। सपा से रेनु चौधरी का अध्यक्ष पद जीतने का कारण साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण था। उनके खिलाफ दो वर्ष बाद ही अविश्वास प्रस्ताव आने के पीछे सूबे में भाजपा सरकार आना और बसपा के कई सदस्यों का भाजपा में आना था। मौजूदा अध्यक्ष सरिता चौधरी स्वयं बसपा से सदस्य का चुनाव जीती थीं और बाद में पाला बदलकर भाजपा में आयीं। जिस वार्ड से वे जीती थीं उस वार्ड में उससे पहले भी बसपा से वीरेन्द्र सिंह जीते थे। जिला पंचायत के कुल 28 वार्डों में से आधों में दलित मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं। ऐसे में अनेक उम्मीदवार बसपा से टिकट के जुगाड़ में जुट गये लगते हैं। इनमें गैर दलित उम्मीदवार बलवीर सिंह, उनका बेटा निरंजन सिंह, जाफर मलिक, कावेन्द्र सिंह, जयदेव सिंह, सोमवीर सिंह (गुरुजी), डॉ. सोरन सिंह, कलवा मलिक, आदि दर्जन भर से अधिक लोगों के नाम शामिल हैं। इनमें अधिकतर अध्यक्ष तथा बाकी सदस्य का चुनाव लड़ना चाहते हैं।
भाजपा से वीरेन्द्र सिंह, सुरेन्द्र सिंह औलख, वेदपाल सिंह, विजय शर्मा आदि के नाम शामिल हैं। सपा खामोश है लेकिन वे भी मजबूती से तैयारी करेंगे। फरवरी में अधिकांश नाम सामने आ जायेंगे। हो सकता है रेनु चौधरी अथवा उनके पति सरजीत सिंह में से भी कोई मैदान में आये। जैसे-जैसे चुनावी समय करीब आता जायेगा चुनावी दंगल के पहलवान सामने आते जायेंगे। ऐसे में कई नेता अपनी दलीय आस्था सुविधानुसार बदलने से भी पीछे नहीं हटेंगे।
-टाइम्स न्यूज़ अमरोहा.