विकास के लिए यूपी का विभाजन जरुरी

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कई संगठन और राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश विभाजन के पक्ष में आवाज़ उठाते रहे हैं.
उत्तर प्रदेश को विभाजित कर जब तक उसे तीन राज्यों में नहीं बांटा जाता, तब तक राज्य के विकास की बात बेमानी है। भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था की खस्ताहालत के पीछे भी यही कारण है। कई संगठन तथा राजनीतिक दल भी सूबे के विभाजन की मांग करते रहे हैं लेकिन केन्द्र में आयी कोई भी सरकार इस ओर ध्यान नहीं देती।

भाषा, संस्कृति और भौगोलिक भिन्नता के कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तेरह जनपदों को शेष प्रदेश से अलग प्रदेशीय इकाई के रुप में अस्तित्व प्रदान करना चाहिए। राष्ट्रीय लोकदल ने कई बार इस हिस्से को हरित प्रदेश के नाम से अलग राज्य बनाने की मांग उठायी लेकिन उसके लिए जोरदार आंदोलन नहीं छेड़ा।

बड़े सूबे में हाइकोर्ट का मुख्यालय प्रयागराज में है। जहां आने जाने का खर्च और समय गरीब और कमजोर लोगों के पास नहीं है। आजादी के सत्तर वर्षों में सबसे बड़े सूबे की बड़ी आबादी ऐसे में न्याय से वंचित है। छोटा राज्य बनने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों को निकट और सस्ता न्याय सुलभ होगा। प्रदेश की राजधानी भी पश्चिमी क्षेत्र से दूर है। तीन राज्य बनने से जनता को राजधानियां भी करीब ही पड़ेंगी। इस समय प्रदेश के शासन पर पूर्वी क्षेत्र के नेताओं का वर्चस्व है। पश्चिम के साथ शासन और प्रशासन  दोनों ही स्तरों पर भेदभाव किया जाता है। कृषि, उद्योग और राजस्व के मामले में भी पश्चिम, पूर्वी जनपदों से बहुत आगे है जबकि बजट का बड़ा हिस्सा पूर्वी जनपदों में खर्च किया जाता है। 
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उत्तम प्रदेश निर्माण नामक एक युवा संगठन पश्चिमी जनपदों को अलग प्रदेश बनाने की मांग कर रहा है। इन युवाओं को चाहिए कि वह इसके लिए लगातार जोरदार आवाज उठाते रहें। तमाम युवाओं को तर्कसंगत तथ्य पेश कर अपने साथ जोड़ें और उत्तराखंड के निर्माण को छेड़े जनांदोलन की तरह संघर्षशील संगठन तैयार कर आगे बढ़ें। उत्तराखंड आंदोलन को तत्कालीन प्रदेश सरकार ने कुचलने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। बड़े आंदोलन की अगुवाई के लिए विशाल हृदय नेतृत्व भी जरुरी है। जुझारु नेतृत्व और मजबूत संगठन के बिना यह काम कठिन बल्कि असंभव है।

-जी.एस. चाहल.

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