
जोया और अमरोहा के आधे से अधिक गांवों के अधिकांश किसान पिछले डेढ़ दशक से टमाटर की खेती करते आ रहे हैं.
फल, अनाज, सब्जी, गन्ना और दुग्ध उत्पादन में अग्रणी जिला अमरोहा के किसान भारी दुविधा में हैं। बढ़ती लागत, गिरती कीमतें जहां बड़ा कारण हैं वहीं सरकारी विभागों की घोर लापरवाही किसानों की दिक्कतें बढ़ाने में कोढ़ में खाज का काम कर रही है।
इस बार टमाटर उत्पादकों की परेशानियां कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी हैं। खेत की तैयारी से लेकर सिंचाई, उर्वरक तथा कीटनाशकों पर भारी भरकम खर्च ने टमाटर की लागत कई गुना बढ़ा दी। शहरों में महीनों लॉकडाउन के कारण पके टमाटरों की सप्लाई चेन बुरी तरह प्रभावित हुई। घटती मांग की वजह से किसानों ने जो भी मिला उसी पर टमाटर बेचने में भलाई समझी। शहरों में ठेलों पर बीस से तीस रुपए किलो बिक रहे टमाटर खेतों से दो-तीन रुपए तक मुश्किल से उठ रहे हैं। खेतों के किनारे बेशकीमती टमाटरों के ढेर लगे हैं जहां किसान एक-दो किलो टमाटर वहां गुजरने वालों को मुफ्त में ही दे रहे हैं। बिक्री के अभाव में पके टमाटर सड़ रहे हैं जिन्हें कूड़ी के ढेरों पर फेंकने के अलावा कोई विकल्प नहीं।


कच्चा टमाटर किसी उपयोग में नहीं लिया जाता और पकने के बाद उसका भण्डारण नहीं किया जा सकता। लिहाजा उत्पादन के अनुरुप सप्लाई की व्यवस्था न होने से उसका सड़ना तय है। एक समस्या यह भी है कि भले ही किसान को ऐसे में मुफ्त में टमाटर लुटाना पड़ रहा हो लेकिन उपभोक्ताओं को अभी भी बीस से तीस रुपए बल्कि कई जगह इससे भी अधिक में खरीदना पड़ रहा है। यही नहीं टमाटर से तैयार सॉस, चटनी आदि के दाम पहले से भी महंगे हैं।


वैसे तो जनपद के अधिकांश गांवों में सब्जी की खेती हो रही है लेकिन जोया और अमरोहा विकास खण्ड के आधे से अधिक गांवों के अधिकांश किसान पिछले डेढ़ दशक से टमाटर की खेती करते आ रहे हैं। एक-दो बार देश के दूसरे हिस्सों में टमाटर का उत्पादन घटने से यहां किसानों को अच्छे दाम मिले थे। उसके बाद से टमाटर का क्षेत्र कई वर्षों से लगातार बढ़ा है। शीतकालीन टमाटर नाम-मात्र को उगाया जाता है, लेकिन ग्रीष्मकालीन फसल का क्षेत्र इसलिए बढ़ा कि विगत वर्षों में इसी मौसम यानी मई-जून में टमाटर के बेहतर दाम किसानों को मिले। कई किसान जुलाई तक फसल बचाये रहे और उन्हें और भी मुनाफा हुआ। किसानों ने भारी मुनाफा कमाने से उत्साहित होकर टमाटर का रकबा बढ़ाया।


कई लोगों, खासकर छोटे किसानों ने तो कर्ज लेकर पूरी कृषि भूमि पर टमाटर ही उगा लिए। इस प्रतिस्पर्धा में दूसरी सब्जियां उगाने की ओर किसानों ने ध्यान नहीं दिया। एक ओर भारी उत्पादन और दूसरी ओर लॉकडाउन के चलते टमाटर का निर्यात बड़ी मंडियों और शहरों तक नहीं हो सका। इसी का खामियाजा किसान भुगत रहे हैं। भारी भरकम खर्च और हाड़तोड़ श्रम से लहलहाती टमाटरों से लदी फसलों से भरे खेतों को देखकर किसान जितने फूले नहीं समा रहे थे, उनके लाल रंग के खूबसूरत पके गुच्छों की बरबादी से उतने ही हताश तथा कुंठित हैं।

चक बदौनिया गांव के किसान शीशपाल का कहना है कि किसान इस बार घाटे में रहे। उन्हें अपनी उपज का सही दाम नहीं मिला। अब जब दाम मिलने शुरु हुए तो टमाटर की फसल खत्म हो रही है।

हैबतपुर के मौ. आरिफ के अनुसार यह साल टमाटर किसानों के लिए खराब साबित हुआ है। ज्यादातर लोगों ने जल्दी फसल लगा दी। इससे रेट कम ही रहे। लॉकडाउन के दौरान भी समस्यायें पैदा हुईं जिनकी भरपाई नहीं हो पाई। उन्हें आगे भी अधिक उम्मीद दिखाई नहीं दे रही।

कोरोना संकट में किसानों की भूमिका की सराहना करते हमारे सत्ताधीश बोलते नहीं थकते लेकिन उनपर क्या बीत रही है? यह जानने की किसी को न तो जरुरत है और न ही वे जानना चाहते हैं। इस बार परेशान किसान अगली बार टमाटर के बजाय और कुछ बोयेंगे तो टमाटर की कीमतें आकाश छुएंगी। यह बार-बार हुआ है लेकिन इसका समाधान नहीं हुआ।
-हरमिन्दर चहल.