नौगावां में भाजपा, सपा, बसपा में तिकोनी टक्कर, जाट निर्णायक भूमिका में

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किसी भी पार्टी की ओर से उम्मीदवार का नाम न आने से सस्पेंस बना हुआ है.

प्रदेश की जिन आठ सीटों पर बिहार विधानसभा चुनावों के साथ उपचुनाव होेने जा रहे हैं उनमें अमरोहा जिले की नौगांवा सादात विधानसभा सीट भी है। यह सीट भाजपा विधायक चेतन चौहान के निधन से रिक्त हुई है। भले ही यहां से जीतने वाले उम्मीदवार का कार्यकाल करीब डेढ़ साल होगा लेकिन उम्मीदवारी के लिए लगातार नामों की सूची लंबी होती जा रही है। सपा, बसपा और भाजपा से टिकट मांगने वाले अथवा उम्मीदवारी की चाह वाले लोग सबसे अधिक हैं। कांग्रेस और रालोद भी उम्मीदवार उतारेंगे लेकिन उपचुनाव में इस सीट के लिए दोनों ही दलों को उम्मीदवार तलाशने होंगे। 

किसी भी दल से कोई भी उम्मीदवार मैदान में आए, त्रिकोणात्मक मुकाबला होगा, जिसमें सपा, भाजपा और बसपा में संघर्ष होना तय है। इसमें जाट मतदाता निर्णायक भूमिका में रहेंगे। जिसके साथ इस बिरादरी का बहुमत जायेगा, फतह उसी की होनी है। उम्मीदवार की छवि भी अपनी भूमिका अदा करेगी। 

जहां भाजपा को यहां अपनी सीट बचाये रखने की चुनौती है। वहीं 2017 में दूसरे स्थान पर रही सपा सीट छीनने की पूरी कोशिश में है। ऐसे में भाजपा को मिले जाट मतों में सेंधमारी के लिए वह किसी जाट उम्मीदवार को मैदान में ला सकती है। सपा में यहां लंबे समय से स्व. चौ. चन्द्रपाल सिंह किसान खासकर जाट बिरादरी के एकछत्र चहेते नेता रहे हैं। उनके बेटे सरजीत सिंह को सपा आगे कर भाजपा और बसपा दोनों पर बढ़त बना सकती है। मुस्लिम वोट सरजीत सिंह के साथ आने से सपा को निर्णायक बढ़त दिला सकते हैं। उधर यदि जयदेव सिंह को बसपा मैदान में उतारती है तो जाट बिरादरी के मताें में विभाजन होगा। सूत्रों से यह भी पता चला है कि रालोद नेता चौ. अशफाक खां एक बार फिर पाला बदलकर बसपा में जाना चाहते हैं। यहां से बसपा सांसद कुंवर दानिश अली से उनकी बात चल रही है। राजनीतिक क्षेत्रों में यह भी चर्चा है कि उन्हें बसपा उम्मीदवार बनाने की कोशिश हो रही है। उल्लेखनीय है कि खां ने 2012 में नौगांवा सीट पर सपा उम्मीदवार के रुप में विजय हासिल की थी। 2017 में टिकट कटने पर वे रालोद से उम्मीदवार रहे तथा जमानत भी नहीं बचा पाए। 

पिछली बार सपा ने मौलाना जावेद आब्दी को मैदान में उतारा उस समय वे कई आपत्तिजनक आरोपों में चर्चित रहे। उन्हें महिला यौनशोषण में आरोपित गैंग से भी जोड़ा गया। हालांकि बाद में पता नहीं चला कि यह सब हकीकत था अथवा इसके पीछे कुछ और था? मौलाना को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। 

यदि फिर से मौलाना आब्दी को लाया गया तो विपक्षी पुराने आरोपों को फिर से उभारेंगे। इससे सपा के लिए परेशानी पैदा हो सकती है। सपा को स्वच्छ छवि और बेदाग व्यक्ति को आगे लाना होगा। 

उधर भाजपा में अभी कोई नाम तय नहीं जबकि कुछ लोग चेतन चौहान की विधवा संगीता चौहान का नाम आगे कर रहे हैं। भाजपा में भी कोई निर्णय नहीं, कई नामों पर मंथन चल रहा है। लोग स्थानीय उम्मीदवार चाहते हैं।

अभी उम्मीदवारों के नाम तय होने दो। उससे स्थिति समझने में मदद मिलेगी लेकिन यह तय है कि भाजपा, सपा और बसपा में तिकोना मुकाबला है और जाट निर्णायक भूमिका में हैं।

-जी.एस. चाहल.