
जनपद की खाली पड़ी नौगांवा सादात विधानसभा सीट पर अभी किसी भी पार्टी ने अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया। इस तरह के उपचुनावों से प्रायः किनारा करती आ रही बसपा भी यहां चुनाव लड़ने की मजबूत तैयारी कर रही है। अभी-अभी पार्टी के पुराने नेता जिलाध्यक्ष डॉ. होरी सिंह का अचानक निधन हो गया। उसके बाद उनके युवा बेटे की भी दुखद मौत हो गई। इस दुखद घटना को एक तरफ छोड़ पार्टी ने पूर्व राज्यमंत्री सोमपाल सिंह को आनफानन में जिलाध्यक्ष का पद सौंप दिया। इसी से पता चलता है कि पार्टी नेतृत्व यहां के उपचुनाव के प्रति कितना गंभीर है।
पूर्व ब्लॉक प्रमुख जयदेव सिंह का नाम पूर्व जिलाध्यक्ष डॉ. होरी सिंह द्वारा हाइकमान को भेजा था। उन्होंने कई और नाम भी भेजे थे, उनका मानना था कि जयदेव सिंह का नाम लगभग तय है, केवल घोषणा की देर है। जयदेव सिंह ने अपनी तैयारी शुरु कर लोगों से संपर्क साधना भी शुरु कर दिया था।
मौजूदा स्थिति से पता चलता है कि भाजपा, सपा और बसपा में त्रिकोणीय मुकाबला होगा। ऐसे में तमाम जातीय वोट बैंक और उनपर उम्मीदवार की पकड़ जय-पराजय का निर्धारण करने में अहम भूमिका अदा करेगी। यहां अभी भी साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का प्रभाव है। केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तुत कृषि विधेयक से हालांकि कृषक समुदाय नाराज दिखता है लेकिन आम किसान को यह भी पता नहीं कि इन बिलों में क्या है? ऐसे में इन बिलों के पारित होने या न होने से आंशिक प्रभाव के अलावा कुछ नहीं होने वाला। वैसे भी किसान अभी एकजुट नहीं रहा। वह भी जाति एवं सम्प्रदाय में बंटा है।
भले ही लोकसभा चुनाव में यहां से बसपा के कुंवर दानिश अली जीते लेकिन उसमें बसपा कार्यकर्ताओं से अधिक सपा कार्यकर्ताओं की भूमिका थी। भाजपा के तत्कालीन सांसद कंवर सिंह तंवर द्वारा क्षेत्र के लोगों की उपेक्षा भी बड़ा कारण थी।
आज की स्थिति में नौगांवा सीट का अल्पसंख्यक समुदाय बसपा के बजाय सपा के साथ एकजुट है। बीते एक साल से बसपा की भाजपा के प्रति चुप्पी और मूक समर्थन को यह समुदाय समझ रहा है। समुदाय की प्रथम पंक्ति के लोगों से बात करने पर इस धारणा की पुष्टि होती है। वैसे भी सपा के साथ मुस्लिम समुदाय को साधने में महारत हासिल करने वाले पूर्व मंत्री तथा विधायक महबूब अली जैसे जमीनी नेता हैं, वहीं कमाल अख्तर और उनके मजबूत समर्थक हैं। महबूब अली के बेटे परवेज अली एमएलसी हैं। पूरे प्रदेश और देश में भाजपा की आंधी में इनकी रिकार्ड मतों से विजय उनके क्षेत्रीय मतदाताओं पर मजबूत पकड़ का जबर्दस्त उदाहरण है। एक लाख से ऊपर मुस्लिम मतदाताओं की इस सीट पर इस बार सपा सबसे मजबूत पार्टी दिख रही है। किसानों का जुड़ाव भी इस दल के साथ होना शुरु हो गया है। फिर भी मौलाना आब्दी जैसे उम्मीदवार से परहेज किया जायेगा तो विजय की उम्मीद तभी की जा सकती है।
बसपा जिस दलित-मुस्लिम एकता की बात का नारा दे रही है वह यहां कारगर नहीं होने वाला। सपा-बसपा में वही मजबूत रहेगा, जिसे मुस्लिम समुदाय का एकजुट समर्थन हासिल होगा। इसके लिए सपा की ओर यह तर्क दिख रहा है। बसपा को यहां इस समुदाय से यदि उम्मीद है तो वह उसकी गंभीर भूल साबित होगी। त्रिकोणीय मुकाबले में भी सपा-भाजपा की आमने-सामने की टक्कर के ज्यादा आसार हैं। उम्मीदवार घोषित होते ही पता चलेगा कि मुकाबला भाजपा-सपा में होगा अथवा बसपा त्रिकोण बनायेगी?
-टाइम्स न्यूज़ अमरोहा.