घंटों आबादी में धुंआ छाया रहा, लेकिन एनजीटी व पर्यावरणप्रेमी खामोश रहे.
किसानों तथा शहरी उपभोक्ता बिजली अधिकारियों तथा बाबुओं की उपेक्षा तथा भ्रष्टाचार की आएदिन शिकायतें करते रहते हैं। कई बार धरना और प्रदर्शन भी करने पड़ते हैं। इस सबके बावजूद सुधार की बहुत कम उम्मीद रहती है। बिजली वाले इसके साथ ही पर्यावरण सुरक्षा को भी ध्वस्त करने पर लगे हैं।
नगर के फाजलपुर बिजलीघर जहां अधिशासी अभियंता का कार्यालय भी है वहां लगभग दस बीघा की खाली भूमि का घास और झाड़ियां काट या खोद कर साफ करने के बजाय उन्हें जलाकर हर बार नष्ट करने का काम किया जाता है। इस बार भी बिजली वालों ने उसमें आग लगा दी जिससे दूर तक धुंआ फैल गया। यहां स्थित आवासीय कालोनी कुछ देर तक धुंए में गायब रही। सांस आदि के मरीज़ों को भी परेशानी हुई। इससे पूर्व भी रविवार को यहाँ आग लगायी गई थी, जिससे धुआं उठा था।
लगभग एक घंटे बाद सूखी घास जलने पर आग स्वयं बुझ गयी। अभी बहुत घास और झाड़ियां बाकी हैं। हो सकता है सूखने पर उन्हें भी जलाकर ही खत्म किया जायेगा। किसानों के खिलाफ मामूली-सी आग भी खेत में जलाने पर एनजीटी और पुलिस हरकत में आ जाती है। लेकिन आबादी के बीच साल में कई बार घंटों धुंआ करने वाले बिजली वालों के खिलाफ इनमें से कोई भी सामने नहीं आता। जबकि यहां का धुंआ थाने की ओर भी जाता है। बिजली वालों का धुंआ, लगता है किसी तरह का प्रदूषण नहीं करता।
एनजीटी की टीम गजरौला में सड़कों के किनारे की धूल तक में प्रदूषण तलाश करती रही है। उसे भवन निर्माण और उसमें प्रयुक्त सामान में भी प्रदूषण दिखाई देता है। किसानों के खेतों की निगरानी में ड्रोन तक लगाये गए हैं। बिजलीघर में लगायी आग का धुंआ उनकी पकड़ से भी बाहर रहा। नगर पालिका के इ.ओ. को भी यह दिखाई नहीं देता। बिजली वालों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं? नगरवासी सवाल करते हैं?
-टाइम्स न्यूज़ गजरौला.