नौगावां उपचुनाव : भाजपा, सपा और बसपा में तिकोना मुकाबला

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कई छोटे दलों तथा निर्दलीय उम्मीदवारों के भी चुनावी दंगल में उतरने की तैयारी है.

नौगावां सादात विधानसभा सीट के उपचुनाव में उम्मीदवार मैदान में उतर चुके। चार प्रमुख दलों में टक्कर की संभावना है। जिनमें भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस शामिल हैं। भाजपा से संगीता चौहान, सपा से मौलाना आब्दी, बसपा से फुरकान अहमद तथा कांग्रेस से कमलेश सिंह मैदान में हैं। 

2015 में इस सीट पर भाजपा के चेतन चौहान करीब 21 हजार मतों से जीते थे। उनका पिछले दिनों  कोरोना से निधन हो गया। उनके स्थान पर भाजपा ने उनकी पत्नी संगीता चौहान को मैदान में उतारा है। चेतन चौहान की सीट बचाये रखना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती होगा। 

पिछली बार नंबर दो पर रहे सपा उम्मीदवार मौलाना आब्दी फिर से मैदान में हैं। इस बार उन्हें रालोद का भी समर्थन हासिल है जिसे वे अपनी मजबूती मान रहे हैं। यह परिणामों के खुलासे पर पता चलेगा कि वे कितने नंबर पाते हैं? 

इस बार बसपा ने नये उम्मीदवार फुरकान अहमद पर दांव लगाया है। जबकि पिछली बार तीसरे स्थान पर रहे जयदेव सिंह का टिकट तो कटा ही बल्कि उन्हें बसपा से भी बाहर कर दिया। इसी के साथ पूर्व जिलाध्यक्ष शेर सिंह बौद्ध ने भी उम्मीदवार के खिलाफ मैदान में उतरकर पार्टी को संकट में डाल दिया। पार्टी में उठापटक और नेताओं की बढ़ती गुटबंदी के बावजूद फुरकान अहमद जीत के सपने देख रहे हैं। 

हालांकि कांग्रेस की स्थिति में कोई सुधार दिखाई नहीं देता है फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर दूसरे नंबर की पार्टी के उम्मीदवार को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। कमलेश सिंह और उनके समर्थक भी चुनावी दंगल में पूरी जोर आजमाइश की तैयारी में जुट गये हैं।

कई छोटे दलों तथा निर्दलीय उम्मीदवारों के भी चुनावी दंगल में उतरने की तैयारी है। नहीं लगता कि ऐसे नेता अपनी जमानत भी बचा पायें।

कृषि कानून बड़ा मुद्दा है नौगावां उपचुनाव में

नौगावां सादात सीट किसान बाहुल्य सीट है। रजबपुर बड़े राष्ट्रव्यापी किसान आंदोलनों का केन्द्र रहा है। यहां के किसानों ने लंबे समय तक कृषि और किसानों के हित में संघर्ष के दौरान शहादत भी दी है। आज भी भाकियू और उससे निकले तमाम संगठन समय-समय पर रजबपुर को ही केन्द्र मानकर आंदोलनों को जिंदा रखे हुए हैं। इनमें जाट, मुस्लिम, सैनी, शर्मा, यादव, गूजर, चौहान आदि सभी वर्गों के किसान शामिल हैं। 

पिछली बार यहां चुनाव साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का रुप ले गया था। जिसका लाभ सीधा भाजपा उम्मीदवार चेतन चौहान को मिला था। इस बार जहां सपा, बसपा और कांग्रेस केन्द्र के नये कृषि कानूनों को मुख्य मुद्दा बनाकर मैदान में है वहीं भाजपा भी उन्हीं को लेकर आक्रामक है। भाजपा ने कृषि प्रधान इस सीट पर पहले ही इन कानूनों के लाभ गिनाने शुरु कर दिए हैं। उनके संगठन से लेकर तमाम नेता और आनुषांगिक सगठनों के कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों से कानूनों की तारीफ करने में जुट गये हैं। हालांकि न तो भाजपा और न ही विपक्ष कृषि कानूनों की प्रतियां किसी को दिखा पा रहा है। ऐसे में दोनों ओर से अंधेरे में तीर चलाये जा रहे हैं। यह मतदाताओं पर निर्भर करेगा कि वे किस पर भरोसा करेंगे? यह मतगणना पर ही पता लगेगा।

-टाइम्स न्यूज़ अमरोहा.