किसान इतना भोला या नादान नहीं जो बार-बार बहकाया जा सके. केन्द्र सरकार गलतफहमी में है, किसान नहीं.
भारत कृषि प्रधान देश है जहां सत्तर फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है। देश में रोजगार प्रदान करने वाला भी कृषि क्षेत्र ही है। जब कोरोना संक्रमण काल में दूसरे सभी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सिकुड़ गये, तब कृषि क्षेत्र ने रोजगार कायम रखा। ऐसे में होना तो यह चाहिए था कि कृषि संसाधनों और किसानों को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार आर्थिक पैकेज प्रदान करती। बल्कि केन्द्र सरकार द्वारा ऐसे मौके पर आनन-फानन में दो कृषि कानून और उनसे जुड़ा तीसरा कानून पास कर लिए। इन कानूनों के मसौदे को सरकार ने अभी तक आम किसान को जानकारी नहीं दी। हमारे सांसद भी इन कानूनों की सही जानकारी नहीं दे पा रहे जिनकी मौजूदगी और स्वीकृति पर इन्हें पारित किया गया। भाजपा के विधायक तथा दूसरे नेता जो इन कानूनों का पक्ष ले रहे हैं वे भी केवल इतना ही कहते हैं कि कानून किसानों के हित में, मंडी प्रणाली खत्म नहीं होगी, एमएसपी भी जारी रहेगी। किसान अपना माल कहीं भी बेच सकेंगे। मजेदार बात यह है कि ये सब चीजें वर्षों से बिना किसी कानून के चल रही हैं। इसके लिए किसी नये कानून की क्या जरुरत?
कॉन्ट्रैक्ट खेती का मौखिक उल्लेख किया जा रहा है लेकिन उसका स्वरुप क्या होगा? उसे तो बिना कानून के भी चलाया जा रहा है। कई कंपनियां कई जगह किसानों के साथ अनुबंध खेती वर्षों से कर रही हैं। इसमें कानून की कोई जरुरत नहीं। किसान आजाद है, वह चाहे तो अनुबंध करे अथवा नहीं। कानूनों से किसान बंध जायेगा। फिर वह स्वतंत्र रुप से खेती नहीं करेगा? उसे कंपनियों द्वारा तय शर्तों पर खेती करनी होगी। सरकार इसके उलट बोल कर किसानों को भ्रमित कर रही है। भाजपा नेता कह रहे हैं कि किसान इन कानूनों के बाद आजाद हो जायेगा। प्रधानमंत्री बार-बार कह रहे हैं कि किसान विपक्षी नेताओं के बहकावे में आकर कानूनों का विरोध कर रहे हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तो किसानों को मासूम तक कह दिया, यानी वे बच्चे हैं, नादान हैं। ऐसा ही मानकर केन्द्र सरकार किसानों को बहकाना चाहती है। किसान इतना भोला या नादान नहीं जो बार-बार बहकाया जा सके। केन्द्र सरकार गलतफहमी में है, किसान नहीं।
-जी.एस. चाहल.