कार्यकर्ताओं में घोर निराशा है. वे आपस में बैठकर भड़ास भी निकालते रहे हैं और अपनी उपेक्षा का रोना भी रोते रहे हैं.
अगले साल होने जा रहे उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने के लिए भाजपा का शीर्ष नेतृत्व और योगी सरकार तैयारी में जुट गया है। इसके लिए भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष और यूपी प्रभारी राधा मोहन सिंह इस सप्ताह तीन दिन तक लखनऊ प्रवास के दौरान शुरुआत कर चुके हैं। उन्होंने शासन और प्रशासन की गतिविधियों की नब्ज टटोली तथा जरुरी बदलावों की जानकारी लेकर केन्द्रीय नेतृत्व को अपनी रिपोर्ट सौंप दी।
रिपोर्ट में जो सुझाव दिए गये हैं उनमें विधायकों की शिकायतों का निपटारा करने, नौकरशाही का दबदबा कम करने और खाली पदों के भरने जैसे तीन सुझाव विशेष तौर पर दिए गये हैं। ये सुझाव बहुत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन चुनावों में पूरा एक साल भी नहीं बचा, ऐसे में इसका वांछित लाभ भाजपा को नहीं मिलने वाला।
विधायकों तथा दूसरे जन प्रतिनिधियों और संगठन पदाधिकारियों की ओर से कभी दबी जबान और कभी-कभी मुखर स्वर में नौकरशाहों द्वारा सुनवाई न होने की आवाजें आ रही थीं। कई विधायकों तथा संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारियों की जहां उपेक्षा की जा रही थी वहीं जनसमस्याओं के समाधान में भी नौकरशाह तथा अधिकारी उनकी सुनवाई नहीं कर रहे थे। यही स्थिति आज भी है।
इसे लेकर कार्यकर्ताओं में घोर निराशा है। वे आपस में बैठकर भड़ास भी निकालते रहे हैं और अपनी उपेक्षा का रोना भी रोते रहे हैं। यही वजह रही कि उन्होंने पंचायत चुनाव में उत्साह के साथ काम नहीं किया। पार्टी के बजाय वे व्यक्तिगत संबंधों की वजह से कहीं-कहीं जरुर सक्रिय रहे।
विधायकों ने चुनाव पूर्व जो वायदे जनता से किए थे। उनमें से ज्यादातर पूरे नहीं हुए। ऐसे नेताओं को चुनावी मैदान में उतरने पर जनता बल्कि अपनी ही पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओं को जवाब देते नहीं बनेगा। कृषि प्रधान राज्य होने के कारण किसानों में सरकार के खिलाफ जो रोष है, वह विधानसभा चुनाव में और भी बढ़ सकता है। इसकी वजह तीन कृषि कानून तो हैं। साथ ही लगातार बढ़ रही डीजल और लुब्रीकेंट्स की कीमतें भी बड़ी वजह हैं। पेस्टीसाइड्स, उर्वरकों और कृषि यंत्रों के मूल्यों में भारी इजाफे से किसानों की नाराजगी शिखर पर है।
भाजपा में किसानों की नाराजगी दूर करने के उपायों पर भी चर्चा जरुर हो रही होगी। बल्कि पंचायत चुनावों के पूरी तरह संपन्न होने यानी जिला पंचायत और क्षेत्र विकास समितियों के विधिवत गठन के बाद ही पार्टी इस समस्या के समाधान के बारे में मंथन करेगी। चुनाव के एकदम निकट आने पर किसानों को किसी राहत की घोषणा की जा सकती है।
-जी.एस. चाहल.