यह तो मतगणना के बाद ही पता लगेगा कि जनपद में कौन-कौन उम्मीदवार विजयी होगा लेकिन जनपद की चारों सीटों पर भाजपा और सपा में कड़ा मुकाबला होगा। अमरोहा को छोड़ भी दें तब भी शेष तीनों सीटों पर बहुत ही कांटे की टक्कर है जिसमें भाजपा और सपा में जोर आजमाइश चल रही है।
धनौरा सुरक्षित सीट से भाजपा ने मौजूदा विधायक राजीव तरारा को मैदान में उतारा है। वे 2017 में कुल मतों के 43 फीसदी मत प्राप्त कर जनपद में रिकार्ड मतों से विजयी रहे थे। उनके सामने बसपा के डॉ. संजीव लाल और सपा के जगराम सिंह खड़े थे जो दोनों मिलकर राजीव तरारा के बराबर मत भी प्राप्त नहीं कर सके थे। यहां से केवल छह उम्मीदवार ही मैदान में थे।
सपा और रालोद गठबंधन से यहां विवेक सिंह मैदान में हैं। यह सीट किसान यूनियन का क्षेत्र माना जाता है। मुस्लिम समुदाय पिछली बार सपा-बसपा में बंट गया था। इस बार इस वर्ग का झुकाव सपा-रालोद की ओर है। किसान खासकर जाट समुदाय का बड़ा भाग भी इधर जाना चाहता है। पिछली बार यह वर्ग पूरी तरह भाजपा के साथ था। वैसे राजीव तरारा के काम और व्यवहार से काफी लोग उन्हें ही पसंद कर रहे हैं। विवेक सिंह बसपा छोड़ सपा में आये हैं तथा वे इस क्षेत्र के लोगों में कभी नहीं रहे। उन्हें पहचान बनाने में परेशानी हो रही है। यह उनकी कमजोरी भी है।
बसपा ने यहां से पूर्व विधायक हरपाल सिंह को मैदान में उतारा है। वे भी मजबूती से चुनाव लड़ेंगे। वे रालोद छोड़ बसपा में आए हैं।
बसपा तथा कांग्रेस भी मैदान में हैं लेकिन यहां सियासी मौसम उनके समर्थन में नहीं बन पा रहा। ऐसे में धनौरा में भाजपा तथा सपा-रालोद गठबंधन में मुकाबला दिखता है।
नौगांवा सादात में भी सपा और भाजपा में कड़ी टक्कर है। भाजपा ने यहां से पूर्व सांसद देवेन्द्र नागपाल को मैदान में उतारा है जबकि सपा-रालोद गठबंधन ने पूर्व विधायक समरपाल सिंह को उम्मीदवार बनाया है। बसपा ने अफाक खां को अपना उम्मीदवार बनाया है। देवेन्द्र नागपाल चुनाव को जीतने की कला के माहिर हैं। वे विधानसभा के पहले चुनाव में ही हसनपुर में निर्दलीय चुनाव जीत कर विधानसभा में पहुंचे थे। वे सांसद का चुनाव भी जीते तथा उससे पूर्व वे अपने सहोदर हरीश नागपाल को निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में दलीय दिग्गजों को पराजित कर विजयी बनाने में भी सफल रहे। भाजपा के दिग्गज स्व. चेतन चौहान को दोनों भाईयों ने बारी-बारी से लगातार दो बार संसदीय चुनाव में पराजित किया। देखते हैं नौगांवा सादात में वे कौनसा दांव खेलकर भाजपा की नैया पार लगाते हैं।
सपा-रालोद उम्मीदवार समरपाल सिंह दो दशक से यहां राजनीति में सक्रिय नहीं रहे भाकियू नेताओं के दवाब पर उन्हें कमाल अख्तर का टिकट काटकर मैदान में उतारा गया है। यहां के सबसे बड़े मुस्लिम वर्ग पर निर्भर करेगा कि वह किधर जायेगा? सपा या बसपा? हालांकि भाकियू कार्यकर्ता जोर-शोर से समरपाल सिंह के चुनाव प्रचार में जुट गये हैं। यहां से बसपा उम्मीदवार अफाक खां को उम्मीद है कि मुस्लिम वर्ग उन्हें समर्थन देगा क्योंकि दलित समुदाय के चालीस हज़ार मतदाता उनके पक्ष में हैं। जो भी हो भाजपा और सपा-रालोद गठबंधन के बीच यहां कड़ी टक्कर है। हसनपुर में स्थिति सपा-भाजपा तथा बसपा में त्रिकोणात्मक है।
-टाइम्स न्यूज़ अमरोहा.