वैसे तो यहां कई उम्मीदवार मैदान में हैं फिर भी सपा तथा भाजपा में कड़ी टक्कर है जबकि बसपा भी तिकोने मुकाबले में संघर्ष कर रही है।
यहां से भाजपा उम्मीदवार राजीव तरारा मौजूदा विधायक हैं। 2017 में वे सपा व बसपा उम्मीदवारों को भारी अंतर से पराजित कर चुनाव जीते थे। वे जनपद की चारों सीटों से जीते प्रत्याशियों में सबसे अधिक बढ़त हासिल करने का रिकार्ड बनाने में सफल रहे। मृदुभाषी और शालीन आचरण के कारण उन्होंने लोगों का दिल जीत लिया था। उन्होंने अपने कार्यकाल में कई ऐतिहासिक विकास कार्य कराये। तिगरीधाम और गढ़मुक्तेश्वर मेले को राजकीय घोषित कराने में उनकी अहम भूमिका रही। खादर क्षेत्र में पोषक नहर बाहा नदी पर पुल की मांग दशकों से की जाती रही। उन्होंने पुल का निर्माण शुरु कराया है। इससे पूर्व खादरवासियों की यह मांग सभी जनप्रतिनिधियों ने अनसुनी की। गंगा के खादर में शेरपुर और चांदरा के निकट लंबित बांध को पूरा कराया तथा एक पुल का निर्माण पूरा कर खादर को क्षेत्र के शेष गांवों से सीधा जोड़ने और बाढ़ के संकट से बचाने का काम भी किया। ग्रामांचलों की टूटी सड़कों की मरम्मत तथा निर्माण का काम भी बड़े पैमाने पर किया। वे पूरे कार्यकाल के दौरान अपना अधिकांश समय क्षेत्र के लोगों के बीच बिताने में संलग्न रहे साथ समस्याओं के निदान का काम भी किया। किसानों, मजदूरों, व्यापारियों तथा महिलाओं की भरपूर मदद में जुटे रहे। राजीव तरारा का मानना है कि लोग उनकी सेवाओं को गंभीरता से लेकर फिर से सेवा का मौका दे रहे हैं। उन्हें भरपूर जनसमर्थन मिल रहा है। उन्हें किसान आंदोलन की वजह से भाकियू से जुड़े कुछ लोगों का समर्थन इस बार नहीं मिल रहा है, वैसे वे किसानों को राजी करने में कहीं तक सफल रहे हैं।
उधर सपा-रालोद गठबंधन ने यहां से साइकिल चिन्ह पर विवेक सिंह को मैदान में उतारा है। वे बसपा छोड़ सपा में आये पूर्व सांसद वीर सिंह के बेटे हैं। विवेक सिंह के यहां आने से पुराने सपा नेता शिथिल हो गये हैं। भले ही वे शीर्ष नेतृत्व के कारण समर्थन कर रहे हैं लेकिन पूरे मन से काम नहीं कर रहे। उधर सपा के सहयोगी रालोद कार्यकर्ताओं में भी बेचैनी है। वे इस सीट को रालोद के लिए मांग रहे थे। चारों सीटों पर जाट मतदाताओं की निर्णायक भूमिका के बावजूद रालोद को एक भी सीट न देकर सपा द्वारा चारों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने से यहां के किसान खासकर जाट मतदाता खामोश हैं। वे फिर से भाजपा की ओर रुख कर रहे हैं। यह सपा उम्मीदवार की कमजोरी मानी जा रही है। सबसे बड़े वोट बैंक मुस्लिम समुदाय का समर्थन सपा को मजबूती भी प्रदान कर रहा है।
जबकि बसपा उम्मीदवार हरपाल सिंह भी मुस्लिम मतों को अपने पक्ष में मान रहे हैं। बसपा के परंपरागत एस.सी. मतों पर पकड़ का दावा कर वे तिकोने संघर्ष में स्वयं को सबसे मजबूत मान रहे हैं। उनके कट्टर समर्थक पूर्व ब्लॉक प्रमुख पति कावेन्द्र सिंह उन्हें जाट मतों में सेंधमारी के प्रयास में जुटे हैं।
एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि फाइट में चल रहे राजीव तरारा के पिता तोताराम विधायक रह चुके और राजीव तरारा 2017 में पहली बार के चुनाव में विधायक बने, यह उनका दूसरा चुनाव है। उन्होंने दलबदल भी नहीं किया। जबकि दशकों से बसपा से जुड़े रहे बसपा के पूर्व सांसद वीर सिंह तथा उनके बेटे विवेक सिंह कोई चुनाव नहीं जीते, वीर सिंह को मायावती ने पिछले दरवाजे से राज्यसभा में भेजा था। वे दलबदल कर सपा में आये हैं।
एक बार विधायक रह चुके हरपाल सिंह बसपा उम्मीदवार हैं। वे पिछले दिनों भाजपा छोड़ रालोद में गये, टिकट न मिलने के कारण बसपा में आये और टिकट पाने में सफल रहे। वे गजरौला नगर पंचायत के चेयरमैन भी रहे।
चुनाव प्रचार में तीनों ही जोर शोर से संलग्न हैं। अब 10 मार्च की मतगणना के बाद पता चलेगा कि जनता ने किसे आशीर्वाद दिया।
-टाइम्स न्यूज़ मंडी धनौरा.