रुस-यूक्रेन युद्ध महाविनाश की राह पर

रुस-यूक्रेन युद्ध महाविनाश की राह पर

जिन हथियारों को मानव ने सुरक्षा के लिए बनाया है वे ही आज हमारे विनाश की राह बनते जा रहे हैं। यह संसार का नियम है कि जन्म लेने वालों को मरना पड़ता है। इसमें कोई संशोधन नहीं हो सकता। रुस-यूक्रेन में जारी भयंकर युद्ध संदेश दे रहा है कि यह केवल दो देशों का युद्ध नहीं बल्कि यह पूरे संसार को प्रभावित कर रहा है। इसमें पूरी दुनिया दो धड़ों में बंटती दिख रही है। भारत सहित जो देश स्वयं को इससे अलग समझ रहे हैं आने वाले समय में उन्हें भी बहुत कुछ सोचने को मजबूर होना पड़ सकता है। भले ही यह सीधी लड़ाई रुस व यूक्रेन में हो रही है लेकिन अमेरिका और उसके मित्र देश परोक्ष रुप से यूक्रेन के साथ खड़े हैं। वहां से यूक्रेन को घातक हथियार और उनका प्रशिक्षण भी मिल रहा है। अमेरिका खुले हाथों पूरी तरह यूक्रेन की आर्थिक मदद भी कर रहा है। यूरोपियन संघ तथा नाटो भी यूक्रेन के साथ रुस से मुकाबले को तैयार है। भले ही वे अभी खामोश हैं तथा सतर्कता से पूरी स्थिति पर नजर गढ़ाए हैं। युद्ध लंबा खिंचने से लाखों लोगों की जिंदगी तबाह हो गयी। हजारों बेकसूर बेमौत मारे जा रहे हैं। एक खुशहाल देश को मरघट से भी भयावह हालत में पहुंचाने के बाद भी दो शासकों के मंसूबे पूरे नहीं हो पा रहे। एक ओर रुस युद्ध को और खतरनाक मोड़ तक लाने में संलग्न है वहीं पश्चिमी देश अमेरिकी नेतृत्व में यूक्रेन की पीठ पीछे खड़े परोक्ष लड़ाई लड़ रहे हैं। रुस पर व्यापार सहित कई प्रतिबंध लगातार अमेरिका उसे युद्ध बंद करने का संकेत दे रहा है। जैसे-जैसे यूक्रेन के पश्चिम से हथियार व आर्थिक मदद मिल रही है, उससे खिन्न होकर रुस युद्ध को और भी भयंकरता प्रदान कर रहा है। यदि यही सिलसिला जारी रहा तो यह युद्ध लंबा चलेगा तथा इसकी सीमा केवल दो देशों तक ही नहीं बल्कि दूसरे कई देश भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। जिसका परिणाम महाविनाश का कारण बन सकता है। रुसी राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन ने संकेत दे दिया है कि जरुरत पड़ी तो वह और भी विनाशक हथियारों का इस्तेमाल करेगा जिसकी जद में वे देश भी होंगे जो उसके शत्रु का साथ दे रहे हैं। पुतिन ने परमाणु हथियारों तक के प्रयोग तक की धमकी भी दी है। यह बहुत ही चिंताजनक है। इस समय कोई भी पक्ष पीछे हटने को तैयार नहीं है। संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रयास भी यहां विफल रहा है। 

शांति की अपील के साथ वार्ता का आग्रह हमारे प्रधानमंत्री भी दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों से कर चुके लेकिन कोई भी पक्ष समझौते को तैयार नहीं लगता। इस समय दुनियाभर में सभी देशों में आपसी व्यापार आदि की संधियां हैं। युद्ध से तारतम्य टूट रहा है। कई देशों में खान-पान की चीजों तक की दिक्कत बढ़ गयी है। युद्ध जारी रहा तो स्थिति बेकाबू हो जायेगी। श्रीलंका में फैली अशांति ताजा उदाहरण है। अफगानिस्तान की हालत पहले ही खराब है। वहां भी दशकों तक अमेरिका तथा तत्कालीन सोवियत रुस की आपसी लड़ाई में लोगों को पिसना पड़ा। उत्तर कोरिया का तानाशाह भी किसी की सुनने को तैयार नहीं। चीन भी तानाशाही और विस्तारवाद की नीतियों पर चलता रहा है। अरब देशों में भी स्थिति सामान्य नहीं मानी जा सकती। हमारे देश में तटस्थता बनाए रखने के बावजूद यूक्रेन-रुस युद्ध का प्रभाव है। आयातित माल के भाव बढ़ने तथा रुपया कमजोर होने से आर्थिक दबाव बढ़ रहा है। लिहाजा दुनियाभर के राष्ट्राध्यक्षों को इस युद्ध को समय रहते यानी जल्दी से जल्दी शांत कराने की कोशिश करनी चाहिए। शनिवार के दिन शुरु हुआ यह साल शनिवार को ही समाप्त होगा। देखते हैं शनि किस पर कृपा और किस पर प्रकोप करते हैं।

-जी.एस. चाहल.