पालिकाध्यक्ष पद के कई दावेदार हैं। भाजपा, सपा तथा बसपा तीनों प्रमुख सियासी दलों से कई नेता अपने-अपने आकाओं की शरण में हैं। वहां से हरी झंडी मिलने की प्रतीक्षा में जो नेता हैं वे अभी प्रचार में संलग्न नहीं हैं। जबकि सपा नेता मुकेश चौधरी ने कहा है कि उनकी पत्नी उर्वशी चौधरी को पार्टी ने उम्मीदवार तय कर दिया। सही समय पर उनके नाम की विधिवत घोषणा कर दी जायेगी।
उर्वशी चौधरी के कार्यकाल का उद्घाटन भी मुकेश चौधरी ने करवा दिया जहां सपा और रालोद कार्यकर्ता चुनावी रणनीति बनाने के लिए बराबर एक-दूसरे से सपंर्क साध रहे हैं। सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष डॉ. जितेन्द्र यादव का कहना है कि यदि उर्वशी चौधरी को उम्मीदवार बनाया जाये तो सपा-रालोद गठबंधन के सहारे चौधरी विजयी हो सकती है।
गजरौला एस.सी. वर्ग में जाने से मौजूदा चोयरपर्सन अंशु नागपाल, पूर्व चेयरमेन रोहताश शर्मा, जैसे मजबूत उम्मीदवारों के साथ सामान्य जाति से मैदान में आने के इच्छुक कई नेता मैदान से बाहर हो गये हैं। भाजपा नेता सुरेन्द्र औलख जो पिछले दो चुनावों में सामान्य सीट के लिए टिकट के दावेदार थे, वे इस बार भी दावेदारी कर रहे थे लेकिन उन्हें भी बदलाव से निराशा हाथ लगी है। डॉ. आशुतोष भूषण शर्मा भी भाजपा से टिकट की जुगत में थे लेकिन उनकी मंशा भी धरी रह गयी। वैसे गजरौला यदि सामान्य वर्ग में आता तो अंशु नागपाल ही सबसे मजबूत उम्मीदवार थीं। यह सभी लोग जानते हैं।
भाजपा ने इस बार भाजपा अनुसूचित जाति मोरचा जिला अध्यक्ष रामरतन सिंह और हेम सिंह आर्य में खींचतान है। हालांकि महेश प्रधान और रविराज सिंह भी दावेदारी कर रहे हैं लेकिन उनके नंबर पर्याप्त नहीं लगते। उधर भाजपा जिलाध्यक्ष रिषिपाल नागर का कहना है कि पुराने वफादार नेताओं को जनपद के नगर निकायों में उम्मीदवार बनाया जायेगा। इन चारों में रामरतन सिंह सबसे पुराने कार्यकर्ता हैं। उन्हें अनूसूचित जाति प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष का दायित्व भी सौंपा गया है। फिर भी वे नगर में लोगों के बीच मजबूत पकड़ नहीं बना पाये हैं। इससे पूर्व वे न तो कोई चुनाव ही जीत पाये और न ही कोई सामूहिक पद उन्हें मिला।
हेम सिंह आर्य का पुराना इतिहास है। उनकी पत्नी कमलेश आर्य जो आजकल जिला पंचायत सदस्य हैं। उन्होंने बीडीसी सदस्य के रुप में चुनाव जीतकर अपनी राजनीतिक पारी शुरु की थी। वे तभी गजरौला की ब्लॉक प्रमुख का चुनाव जीतीं। बाद में जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीतकर जिला पंचायत अध्यक्ष का पद पाने में सफल रहीं। वे ये सभी चुनाव पहली बार लड़ीं और ही बार विजयी रहीं। साथ ही कार्यकाल निर्बाध रुप से पूरा किया। इस बार वे जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ीं तथा विजयी रहीं। वे ये सभी चुनाव पहली बार लड़ीं तथा विजयी रहीं। इसमें हेम सिंह आर्य की सूझबूझ और जन स्वीकार्यता भी काम आयी। भले ही एक बार हेम सिंह आर्य विधानसभा का चुनाव नहीं जीत पाये लेकिन कमलेश आर्य सभी चुनावों में अजेय रहीं। यह दम्पत्ति पहली बार भाजपा में शामिल हुआ है। जहां राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में वह उपरोक्त भाजपा नेताओं से मजबूत हैं वहीं भाजपा के नये कार्यकर्ता हैं। इस दृष्टि से रामरतन सिंह उनसे पुराने भाजपाई हैं। हालांकि रामरतन सिंह भी पहले बसपा में ही थे। जबकि आर्य उनसे भी पुराने बसपाई हैं। महेश प्रधान और रविराज सिंह भी पुराने भाजपा कार्यकर्ता नहीं हैं।