कैंसर, मधुमेह और हृदय संबंधी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। लीवर तथा किडनी के मरीज भी लगातार बढ़ रहे हैं। बढ़ते रक्तचाप की शिकायतें आम बात हैं। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विशेषज्ञ इसके लिए वायुमंडल में बढ़ते प्रदूषण, जहरीले खान-पान, बदलते सामाजिक परिवेश आदि को उत्तरदायी मान रहे हैं।
मरीजों को चिकित्सक हरी सब्जियां और फलाहार की सलाह के साथ नियमित व्यायाम की सलाह देते हैं। आयुर्वेदाचार्य भी इसी तरह की बात करते हैं। वे प्राकृतिक पोषक तत्वों पर भी बल देते हैं। वास्तव में स्वास्थ्य बनाये रखने में यह सलाह बहुत ही महत्वपूर्ण और कारगर है। हमारे देश से लेकर अमेरिका तक दुनियाभर में स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस विषय पर गंभीरता से शोध करने में जुटे हैं।
वास्तव में इससे उल्टा प्रभाव हो रहा है। जबकि विशेषज्ञ अपनी जगह बिल्कुल सही है। फिर वजह क्या है? आजकल हम जिन फलों और सब्जियों को खा रहे हैं वे खतरनाक जहर से भरे हुए है। बीज बोने से पौधा बड़ा होने और फलने-फूलने तक न जाने कितनी बार पेस्टीसाइड का छिड़काव किया जाता है। भूमि को दीमक आदि से बचाव के लिए मिट्टी में बेहद खतरनाक कीटनाशक मिलाये जा रहे हैं। बीज शोधन में भी जहरीले रसायनों का प्रयोग हो रहा है। सभी फलों और सब्जियों पर प्रदूषित वातावरण में अनेकों बीमारियां फैलती हैं उनके निवारण के लिए बार-बार जहरीले कीटनाशकों का प्रयोग फसलों में किया जा रहा है। इससे फल सब्जियां और वह हवा जिसमें हम सांस ले रहे हैं तो दिल, फेफड़े, किडनी, लीवर और दूसरे सभी अंग भला कैसे स्वस्थ रह पायेंगे। दालों और अनाजों का भी यही हाल है। गोबर खाद या कम्पोस्ट की अनुपलब्धता में रासायनिक खादों का प्रयोग भी यहां कोढ में खाज का काम कर रहा है।
प्राकृतिक खेती की चरचायें होती रहती हैं। लेकिन धरातल पर उसे लाना इतना आसान नहीं जैसा विभिन्न मंचों से कहा जाता है। आज मशीनीकरण खासकर डिजिटलीकरण ने मानव को बेहद अरामदायक जीवन का आदि बनाने का काम किया है। उसने शरीर और दिमाग दोनों को ही निकम्मा बनाकर रख दिया है। प्राकृतिक खेती और प्राकृतिक जीवन प्राकृतिक ढंग से परवान चढ़ सकते हैं। क्या हम ऐसा जीवन जीने को तैयार हैं? यदि नहीं तो मानव बीमारियों के कहर से नहीं बच पायेगा।
-जी.एस. चाहल.