भारतीय संस्कृति में महात्मा गांधी ने कहा था, "अंतर्राष्ट्रीय भाषा में विदेशियों को अपनी भाषा में संबोधन करने का एकमात्र अवसर हमारे धर्म के तीर्थों का दर्शन है।" इस स्पष्ट उक्ति के साथ हमें अपनी संस्कृति की एक महत्वपूर्ण प्रतीक, कार्तिक पूर्णिमा, जिसे हम गंगा मेला के नाम से भी जानते हैं, के बारे में विचार करना चाहिए। यह पवित्र पर्व हर साल तिगरी में मनाया जाता है, जहां लाखों श्रद्धालु एकत्र होकर गंगा नदी के तट पर स्नान करने के लिए आते हैं। इस महापर्व में एकता, श्रद्धा और हर्षोल्लास की भावना साझा की जाती है, जो हमारी संस्कृति का अनूठा प्रमाण है।
कार्तिक पूर्णिमा का आयोजन और प्रबंधन प्रतिवर्ष किया जाता है। इसमें जिले के प्रशासनिक मशीनरी की व्यवस्था का बड़ा हिस्सा होता है। पुलिस यहां की सुरक्षा व्यवस्था का दायित्व वहन करती है। इस विशाल मेले की व्यवस्था करना आयोजकों के लिए चुनौतीपूर्ण होता है, लेकिन इसे सफलतापूर्वक पूरा करके इस मेले को शांतिपूर्ण संपन्न किया जाता है। हालांकि, इतने बड़े आयोजन में कुछ न कुछ त्रुटियां होना सामान्य हैं, लेकिन यह उन्हीं त्रुटियों का दोषारोपण बाद में आयोजकों और मेला प्रशासन के ऊपर थोपा जाता है।
गंगा मेला में स्नान करने का मुख्य कारण यह है कि हम सभी एक हैं। इस पवित्र स्नान के माध्यम से हमारे अंदर एकता की भावना मजबूत होती है। यह मेला सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और विरासत का प्रतीक भी है। यहां लाखों लोग अपने आप को गंगा माता के श्रद्धालु मानकर उनकी पूजा-अर्चना करते हैं और स्नान करते हैं। यह उन्हें एक साथ एकत्रित होने का अवसर देता है और उन्हें यह अनुभव कराता है कि हम सभी एक ही परिवार के हिस्से हैं।
इस अद्भुत मेले के दौरान, लोग गंगा में स्नान के साथ-साथ विभिन्न पूजा पाठ, आरती और धार्मिक कार्यक्रमों में भी भाग लेते हैं। यहां परंपरागत संस्कृति और धार्मिक महत्व के साथ-साथ सामाजिक एकता और सौहार्द की भावना भी प्रमुखता से प्रदर्शित होती है। इस मेले में लोग अपने आप को ईश की कृपा और गंगा माता के आशीर्वाद में महसूस करते हैं और इसका अनुभव करते हैं।
गंगा मेला के दौरान श्रद्धालु भक्तों को यह अवसर मिलता है कि वे अपने जीवन को शुद्ध, उच्च और उदार भावनाओं के साथ जीने के लिए प्रेरित हों। गंगा मेला में लोग सभी वर्गों, जातियों और धर्मों से आते हैं। यहां के तटों पर हजारों श्रद्धालु एकत्र होते हैं, आपस में मिलते हैं और एक साथ स्नान करते हैं। यह स्नान हमारे अंदर एकता की भावना को मजबूत करता है। यह एक ऐसा सामाजिक और आध्यात्मिक अनुभव है जो हमें यह बताता है कि हम सभी एक हैं, हमारी गहरी आत्मिक जड़ें एक ही मूल में उद्भूत हुई हैं।
गंगा मेला के दौरान लोग श्रद्धा और आदर के साथ स्नान करते हैं। वे अपने पूर्वजों की स्मृति को याद करते हैं और गंगा नदी को पवित्र मानते हैं। इसके अलावा, गंगा मेला धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र है। इसमें धार्मिक प्रवचन, संत समागम, भजन-कीर्तन, ज्ञान संगम और कई प्रकार के धार्मिक आयोजन होते हैं।
गंगा मेला में लोग गंगा में स्नान करने आते हैं ताकि वे एकता की अनुभूति कर सकें। जब हम सभी एक साथ गंगा में स्नान करते हैं, तो हम समझते हैं कि हम सभी एक हैं, हमारी संगठनशीलता और मानवीयता में कोई भेद नहीं है। हम सभी एक ही परिवार के हिस्से हैं। इस तरह का स्नान समग्रता और विश्वास की भावना को प्रगट करता है।
-हरमिन्दर सिंह चाहल.